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________________ 162 धार्मिक-वहीवट विचार - 'जेण चेइअदव्वं विणासियं, जिणबिंबपूआदसणाणंदितहियआणं भवसिद्धिआणं सम्मदंसणसुओहिमणपज्जवकेवलनाणनिव्वाणलाभा पडिसिद्धा / / अर्थ : जिसके द्वारा चैत्य द्रव्यका विनाश हुआ है, उसके द्वारा जिन बिम्बकी पूजा और दर्शनसे आनंदित होने पर, भवसिद्धि आत्माओंके सम्यग्दर्शन, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान, केवलज्ञान तथा निर्वाणके लाभोंका प्रतिबोध कराया गया / . - वसुदेव हिंडी जिनेश्वरदेवके स्थापना निक्षेपोंको माननेवालेको जिनचैत्यकी, उसकी पूजाकी, उसके लिए आवश्यक उपकरणोंकी और उसमें कमी न आये, उसके लिए, देवद्रव्यकी वृद्धिकी और उसके संरक्षणकी अनिवार्य आवश्यकता - विचारसमीक्षा पृ. 97 लेखक : मुनि रामविजय इससे तो उन पूज्य श्रीकी ओरसे भी संमति प्राप्त होती है कि देवद्रव्यमेंसे जिनपूजाकी सामग्री लायी जा सकती है और जिमभक्ति भी की जा सकती है, अस्तु / . अब समझमें आयेगा कि स्वप्नादिकी आमदनीमेंसे पूजारीको वेतन देनेसे करोड़ो रूपयोंका देवद्रव्य जीर्णोद्धारमें जानेमें रुकावट आनेका भय जरा भी वास्तविक है क्या ? __जो लोग, स्वद्रव्य खर्चनेका शक्य न हो ऐसे स्थानमें भी कल्पित देवद्रव्यमेंसे पूजारीके वेतनादिका निषेध करते हैं और होहल्ला मचाते हैं, वे शिल्पी और सलाटोंकी तिजौरियों को भरपुर बना देनेवाले देवद्रव्यके लिए क्यों आवाज नहीं उठाते ? वैसे जिनमंदिरों और तीर्थोकी प्रतिष्ठादिके कार्योंमेंसे विरोधप्रदर्शनके साथ दूर क्यों नहीं रहते ? उपरान्त कई लोग कहते हैं कि- कल्पित देवद्रव्यमेंसे यदि पूजारी को वेतन आदि दिया जायेगा तो धर्मीजन स्वद्रव्यके साधारणके फंड आदि अब बंद कर देगा / ' ये और ऐसे अनेक बनावटी भयस्थान बताकर संमेलनके श्रमणोंको शास्त्रविरोधी कहलानेका प्रयास अत्यंत अनुचित है / ___ पुनः याद करें कि जहाँ स्वद्रव्यकी शक्तिके दर्शन होंगे, वहाँ संमेलनके सुविहित श्रमण स्वद्रव्यका ही श्रावकोंके पास उपयोग कराकर, उनकी धनमूर्छा उतारके वास्तविक जिनभक्तिके उन्हें उपासक बना देंगे / ऐसे झूठे भयस्थान
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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