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________________ 160 धार्मिक-वहीवट विचार होगी ? बादमें बची हुई रकमका उपयोग तो जीर्णोद्धारादिमें ही होनेवाला सचमुच तो नूतन तीर्थ निर्माण करनेवालों और उन्हें प्रेरणा देनेवालों ने ही देवद्रव्यके करोडो रूपये उसकी ओर खींचकर मेवाडादि क्षेत्रोंके अत्यंत आवश्यक जीणोंद्धारके कार्योंको विलंबित कर दिये हैं / उपरान्त, लाखों या करोडों रूपयों द्वारा जो जिनालय निर्मित किये जा रहे हैं, उनको तो श्रावक लोग अपनी जिनभक्तिके लिए खड़े करें, उनके लिए वे देवद्रव्यकी रकमका उपयोग कर सकते हैं क्या ? उन्हें तो आदर्श-नमूना पेश करनेके लिए भी स्वद्रव्यका उपयोग करना चाहिए / उनके प्रेरक, कारक और प्रतिष्ठाकारक आचार्य, श्रावकोंको देवद्रव्यकी करोडों रूपयोंकी रकम क्यों एकत्रित करा देते होंगे ? वे उन श्रावकों . को स्वद्रव्यका फंड एकत्रकर ही जिनालयोंका या तीर्थोंका निर्माण करनेका उपदेश क्यों नहीं देते ? अथवा, वैसे जिनालयादिके प्रतिष्ठादि कार्य करा देनेके प्रसंगोंमें अनुपस्थित क्यों नहीं रहते ? ___अब यदि शक्तिमान श्रावक भी स्वद्रव्यके बदले देवद्रव्यमेंसे जिनभक्तिके लिए जिनालय बना सकते हैं तो स्वद्रव्यमेंसे ही जिनपूजाकी सामग्री, गोठी को वेतन देना, ऐसा आग्रह क्यों रखते हैं ? स्व. पू. पाद. व्या. वाचस्पति आ. देव श्रीमद् रामचन्द्रसूरीश्वरजी म. साहबने ही जिनकी भक्ति और जिनपूजाके उपकरणोंकी वृद्धिके लिए देवद्रव्यकी वृद्धि करनेके लिए सूचित किया है / इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि देवद्रव्यमेंसे जिनभक्ति हो सकती है और भक्तिविषयक उपकरण (केसर आदि) लाये जा सकते हैं / यहाँ उनके द्वारा संशोधित किये ('विजय प्रस्थान' नामक पुस्तककी प्रस्तावनामें उन्होंने इन श्लोकों और उनके भाषान्तरका संशोधन किया है ऐसा स्पष्ट उल्लेख है। ) श्लोक और उसके अर्थ : 'चैत्यद्रव्यस्य जिनभवनबिम्बयात्रास्नात्रादिप्रवृत्तिहेर्तोहिरण्यादिरूपस्य वृद्धिरूपचयरूपोचिता कर्तुमिति / / अर्थ : जिनभवन, जिन बिम्ब, जिन यात्रा तथा जिनेश्वरका स्नात्र आदि प्रवृत्तिके हेतुरूप हिरण्य आदि रूप चैत्य द्रव्यकी वृद्धि अर्थात् उपचय
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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