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________________ परिशिष्ट-१ 157 किया था / यह है वह ठराव : (सेठ मोतीशा लालबाग जैन चेरिटीजके ट्रस्टियोंकी ता. ११-१०१९५१की सभामें निम्नानुसार सर्वानुमतिसे ठराव पारित किया गया था / ) ठराव - देरासरजीमें आरती, पूजा आदिका जो घी बोला-कहा जाता है, उस घीकी उत्पन्न आमदनीमेंसे संवत 2009 कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा बुधवार ता: ३१-१०-५१से निम्नानुसार ठरावके मुताबिक, उसका उपयोग करनेका सर्वानुमतिसे ठराव पारित किया जाता है / देवद्रव्यके प्रकारके विषयमें श्रीमद् हरिभद्रसूरिजी प्रणीत 'संबोध प्रकरण'की 163 आदि गाथाओंमें जो व्याख्याएँ दी हैं उनमें चैत्य द्रव्यके तीन प्रकार - पूजा, निर्माल्य और कल्पित ऐसा निर्दिष्ट है / कल्पितआचरित द्रव्य कि जिसमें जिनेश्वरकी भक्तिके लिए समाचरित सशास्त्रीय जैसे कि पूजा, आरती आदि साधनोंकी बोली द्वारा जो आमदनी हो, उस द्रव्यको आचरित-कल्पित द्रव्य-माना गया है और वैसा द्रव्य चैत्यसंबंधी कार्यमें, गोठीके वेतनमें, केसर, चंदन आदि सर्व कार्योमें और श्री जिनेश्वरके अलंकार आदि बनानेमें उपयुक्त किया जा सकता है, ऐसा निर्दिष्ट किया है / तो उपर कथानुसार उपयोगमें घीकी बोलीकी आवककी जो आमदनी हो, उसमेंसे ऐसी बातोंके निमित्त खर्च करनेका सर्वानुमतिसे निश्चित किया जाता है / ___बम्बईके सर्वसंघोके संगठन स्वरूप मध्यस्थ संघने भी, इसी मतलबका प्रस्ताव कर अभिप्रायार्थे आचार्य भगवंतोसे मार्गदर्शन लेने पर, उस मध्यस्थ बोर्डके उपर्युक्त आ. देवने श्रीमद् पद्मविजयजी महाराज साहबके पास जो पत्र लिखाया था, उसमें उसने उपर्युक्त पारित किये ठरावके विषयमें देवद्रव्यका अस्थानीय और अनुचित उपयोग होनेकी बात पर दुःख व्यक्त करने के साथ, ऐसे मतलबका बयान दिया कि 'आपने जो ठराव पार किया है, उसमें इन भयस्थानोंके प्रति भी ध्यान दें / उसमें उन्होंने छठवी बात जो बतायी है, उसके परसे यह एकदम स्पष्ट होता है कि वे कल्पित देवद्रव्यकी रकममेंसे गोठीको वेतनादि देनेमें संमत थे लेकिन जरूरतसे अधिक गोठी रखकर या गोठीको ज्यादा वेतन देकर उस देवद्रव्यकी रकमका दुरुपयोग करनेके सख्त विरोधी थे / 'दुरुपयोग' विरुद्ध उन्होंने जो नापसंदगी व्यक्त
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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