________________ 156 धार्मिक-वहीवट विचार है, उसे ट्रस्टिलोंग अधिकादिक दो सालकी समयमर्यादामें निम्नानुसार जैनशास्त्रके आधार पर इस संस्थाके अधिकृत देरासरमें एवं अन्य जैन देरासरोंमें निमित्त रकमोंका उपयोग कर लें / यहाँ बादमें किसी भी प्रकारकी गेरसमझ पैदा न रहे इसी लिए श्री हरिभद्रसूरिजी द्वारा किये गये संबोध प्रकरणमें सूचित देवद्रव्य तीन प्रकारके है और वे निम्नानुसार हैं / .. (1) पूजा द्रव्य : इसके अंदर प्रभुजीके अंगों पर चढ़ाये गये आभूषण एवं उसके निमित्त आये द्रव्य और सामग्रीका समावेश होता है और उसमें से श्री प्रभुजीके अंगका खर्च किया जा सकता है / (2) निर्माल्य द्रव्य : इसके अंदर प्रभुजीके सन्मुख रखे गये चावल, नगद रकम और पूजाके उपयोगमें लिये गये साधन-सामग्रीका समावेश होता हैं और उसमेंसे जिनेश्वरोंके किसी भी प्रकारके देरासरके लिए खर्च किया जा सकता है / (3) चरित द्रव्य अर्थात् कल्पित द्रव्य : इसके अंदर जिनेश्वरकी भक्तिके लिए श्रीमंतोंने या अन्य किसीने साधन या द्रव्य समर्पित किया हो अथवा बोलीसे या अन्य प्रकारसे द्रव्य उत्पन्न कियां हो, उसका समावेश होता है, और उसमें से देरासरका निर्माणकार्य, मानवोंकी तनख्वाह, पूजाका सामान, जीर्णोद्धार, देरासरमें सुधार-विस्तार कराना या नये देरासरका निर्माण करना आदिका और देरासरका सारा संचालनखर्च, टैक्स आदिके लिए किया जा सकता है / उपर निर्दिष्ट क्रमांक 1 के कार्यमें 2 और 3 मेंसे भी रकमका उपयोग किया जा सकता है- / क्रमांक 2 के काममें क्रमांक 3 मेंसे रकमका उपयोग कर सकते हैं / इस संस्थाके ट्रस्टी लोग, उपर निर्दिष्ट कार्यमें श्री जैनशास्त्रके अनुसार रकमका उपयोग कर सकेंगे / " स्वप्नादि बोली-चढ़ावेकी रकमको कल्पित देवद्रव्य विभागमें मान्य रखने में संमति देनेवाले दूसरे महापुरुष है : पूज्यपाद स्वर्गस्थ सिद्धान्तमहोदधि आ. देव. श्रीमद् प्रेमसूरीश्वरजी महाराजा साहब / ____ बात ऐसी है कि दि. ११-१०-५१के दिन 'मोतीशा लालबाग जैन चेरिटीज' संस्थाके ट्रस्टियोंने पूजा, आरती आदिके चढावेकी रकमको शास्त्रपाठोंकी गाथाओंको साक्षी बनाकर, कल्पित देवद्रव्यके रूपमें मान्य कर, उस रकममेंसे गोठीका वेतन, केसर आदिमें उपयोग करनेका सर्वानुमतसे ठराव