________________ 147 चौदह क्षेत्रोंसे संबद्ध प्रश्नोत्तरी उत्तर : अनिवार्य रूपसे करना चाहिए / उसकी जानकारी उन्हें संचालन करने में और अपने जीवद्रव्यको व्यवस्थित करने में खूब उपयुक्त बनेगी / काश, वर्तमान हालत तो तद्दन विषम है / इसीलिए ही कई संचालनोमें शास्त्रनीति दृष्टिगोचर नहीं होती / प्रश्न : (153) अच्छे भले, शास्त्रके ज्ञाता, कार्यदक्ष, श्रद्धालु जैन लोगोंको ट्रस्टी नहीं बनना चाहिए ? वे क्यों इस विषयमें गौरसे सोचते नहीं ? उत्तर : ऐसे मनुष्योंको अवश्य जिसतिस धार्मिक संस्थाके ट्रस्टी बनना चाहिए / जिन्हें दो पुत्र हैं / दोनों दुकान आदि व्यवसायोंमें स्थिर हो गये हैं / पिताजीको चिन्तामुक्त किये हैं / पिताजीकी निजि संपत्तिकी सूदकी अच्छी-खासी आमदनी है / ऐसे सभी पिताओंको अपने शेष जीवनकालमें धार्मिक संस्थामें स्थिर हो जाना चाहिए / जैसे सामयिक करना, मालाएँ गिननी, यात्रा करना यह धर्म है, उसी प्रकार धार्मिक संस्थाका संचालन करना, सुसंचालन निभाना, यह भी विशिष्ट धर्म है / इस बातका सभी धर्मप्रेमी लोगोंको स्वीकार करना चाहिए। बेशक....इस संचालनमें माथापच्ची करनेवाले कई टकरायेंगे, लेकिन उससे डरकर ऐसे संचालनसे दूर रहना, यह तो दूषित स्वार्थ भाव है / ___ऐसी हालतमें जैसेतैसे मामूली आदमी ट्रस्टी बननेके लिए आ धंसते हैं / ऐसे बेकार निकम्मोंको स्थान मिल भी जाते हैं / वे उसका अनेक प्रकारसे दुरुपयोग करते हैं / ट्रस्टको भारी नुकसान पहुँचाते सज्जनोंकी निष्क्रियता, इस प्रकार कितनी जगह पर कितना बड़ा अहित करती होगी ? ___यदि केवल पाँचसौ निवृत्त, सुखी, सज्जन, शास्त्रचुस्त आदमी, मानद सेवा दें तों, सभी तीर्थों के संचालन साफ-सुथरे हो जायें / / ___ . लड़के कमाते हों, फिर भी पिता दूकान पर जाकर बैठे, कोई प्रवृत्ति चाहिए इस लिए दूकान पर जाकर बैठना, यह कोई अच्छी बात नहीं / धार्मिक ट्रस्टोमें मानद सेवा देकर भी प्रवृत्तिशील क्या रहा नहीं जाता ?