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________________ 146 धार्मिक-वहीवट विचार मिलती है।) यदि कुभाग्यसे बैंकोके नियामकोंकी बुद्धि भ्रष्ट हो अथवा गलती कर बैठे और भारी रकम गँवाने पर बैंक घाटेमें जायें तो बड़े पैमाने पर सभी ग्राहकोंको ट्रस्टोंकी रकमोंसे हाथ धोना पडे / ऐसी हालतमें देवद्रव्यादिकी सारी रकमें गँवा देनी पडे / ऐसी जिम्मेवारी और रकमें भरपाई करनेका जोखम उठानेके लिए ट्रस्टी तत्पर नहीं होंगे / यह भयस्थान अवश्य है, लेकिन क्या दो पाँच बैंकोंको 5-5 मिलाकर 25 ऐसे नियामक मिल न पाये, जो अच्छी तरह बैंकोका संचालन कर न सके ? यह अवश्य हो सकता है, लेकिन ऐसे प्रामाणिक और दक्ष नियामकोंका किसी भी कारणवश अभाव पैदा होने पर, उनके स्थान पर ऐसे ही कार्यकर आ धमकेंगे और उन पर ठीकठाक विश्वास जमता ही नहीं / यद्यपि आज सांगलीमें पार्श्वनाथ सहकारी जैन बैंक वर्षों से चल रही है / अत्यन्त सज्जन ऐसे उसके नियामक हैं / करोडों रूपयोंकी उसमें अमानते (डिपोजिटे) हैं / धार्मिक रकमोंको वह ज्यादा रियायतें देता हैं / महाराष्ट्रमें उसकी अन्य शाखाएँ भी खुली हैं / वे भारतभरके जैन ट्रस्टोंकी रकमोंको डिपोजिटके रूपमें स्वीकार करनेके लिए तैयार हैं / मुझे लगता है कि सभी धार्मिक ट्रस्टी अपनी रकमोंको उसीमें डिपोजिट करें। वे लोग किसी हिंसक कार्योंमें रकमोंका उपयोग नहीं होने देते। ये नियामक (सुश्रावक बिपिनभाई आदि) सांगली मूर्तिपूजक जैन संघमें ट्रस्टी भी हैं / वे श्रद्धासंपन्न होनेसे रकमका अशास्त्रीय उपयोग करनेके लिए तैयार नहीं / इसमेंसे प्रेरणा प्राप्तकर यदि गुजरातमें वैसे जैन बैंक शुरू किये जाय तो घोर आरंभ-समारंभके कार्यों में अनिवार्य रूपसे देवद्रव्यादि संपत्तिका उपयोग करनेका अतिभयानक पापमेंसे समुचे जैन संघको मुक्ति मिल पाये / जैन संघका अभ्युदय न होनेके पीछे यह भी एक महत्त्वका कारण न होगा ? प्रश्न : (152) ट्रस्टी बननेवालोंको 'द्रव्य सप्ततिका', 'श्राद्धविधि' जैसे कार्यमें उपयुक्त बननेवाले ग्रन्थोंका अभ्यास करना नहीं चाहिए ?
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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