________________ चौदह क्षेत्रोंसे संबद्ध प्रश्नोत्तरी 145 अब यदि ऐसा कोई काम निवृत्त हुए, होनेवाले जैन सद्गृहस्थ करने तत्पर न हों तो धार्मिक संचालन खत्म होगा / गैरव्यवस्था उत्पन्न होगी / हमारे धर्मस्थान मुनिमोंके अधिकारक्षेत्रमें चले जायेंगे / ऐसे अनेक कारणवश हमारा धर्म महान होने पर भी, देदीप्यमान नहीं होता / जगतमें उसका बोलबाला नहीं हो पाया / वयस्क वर्ग इस विषयमें तैयार हो / जो मरणासन्न हो, वे तप, त्याग, व्रत, जप करें / वे भी यदि हो न पाये तो सबसे सर्वोत्कृष्ट धार्मिक संचालन किसी एकाध तीर्थ स्थलका संपूर्ण तया स्वहस्तक संभाल कर, उसका शास्त्रनीति अनुसार संचालन करना चाहिए / जिससे सद्गतिका आरक्षण होकर ही रहेगा / .. प्रश्न : (151) जैन कौमकी अपने सहकारी बैंक हों तो सरकारी बेंकोमें अनिवार्य रूपसे ट्रस्टोंकी देवद्रव्यादिकी रकमें जमा करानेसे, खतनाक हिंसक कार्यो में उसका उपयोग करनेसे होनेवाला घोर पाप रूक न जाय ? ____उत्तर : यह बात अत्यंत शोचनीय है / इस बातको जैन संघ सर्वाधिक प्राथमिकता दें / . यदि देवद्रव्य, पूरे कर्जके साथ लेने पर भी गरीब साधर्मिकादिको देनेसे इन्कार किया जाता हो तो उसी देवद्रव्यकी रकमका उपयोग कत्लखानों, मुर्गाकेन्द्रों, मत्स्योद्योगों, कारखानोंमें किया जाय तो वह कितना खतरनाक होगा ? इस महापापके निवारणार्थ सही मार्ग यही है कि धार्मिक ट्रस्ट अपनी रकमोंको बैंकमें जमा न कराये / जिसकी जहाँ आवश्यकता हो वहाँ शास्त्रनीति अनुसार उपयोग कर लें / . . कायमी तिथि-योजना आदिके बजाय, वार्षिक योजनाएँ ही कार्यान्वित करें, जिससे प्रतिवर्ष उन रकमोंका उपयोग होता रहे / फिर भी कई बार कायमी फंड इकट्ठा करना ही पड़े तो उस फंडकी रकमको अनिवार्य रूपसे सरकार जिसे मान्यता दे, उसी बैंकमें जमा करानी पड़े / इसके लिए जैन बेंक श्रावक लोग शुरू करें तो उन रकमोंको उनमें जमा की जाय, जिससे उसका उपयोग पूर्वोक्त कत्लखानें आदिमें न किया जाय / जैन बैंकोमें एक ही खतरा है कि उसमें जमा की रकमोंकी सुरक्षाकी सौ प्रतिशत गारन्टी नहीं बनी रहती / (सरकारी बैंकोमें इसकी गारन्टी धा.व.-१०