________________ 144 धार्मिक-वहीवट विचार सोचें तो उसके लिए बड़ा फंड इक्ट्ठा करना पडे / उस फंडको सरकारके नियमानुसार बैंकोमें ही जमा कराना पड़े / ये बैंक इन रकमोंका उपयोग महारंभ और महाहिंसाकी योजनाओंमें करते हैं / यह हमारे लिए अस्वीकार्य बात होगी / उसकी अपेक्षा तो उदारचरित आत्मा अपने व्यापार-व्यवसायोमें जैनोंको ही अधिकाधिक प्रमाणमें नौकरी आदिमें रख लें, तो भी यह समस्या हल हो जायेगी / उपरान्त, गुप्त दान भी वैसे दानवीर ही कर सकते हैं / व्यवसायमें पूंजी लगानेके लिए रकम दे सकते हैं / अस्पतालोंमें भारी सुविधाएँ दिलवा सकते हैं / वर्षमें दो बार बड़े पैमाने पर घी, तेल, अनाज, गुड आदिका वितरण अपने अपने नगरोमें वे करा सकते हैं / बाकी तो वर्तमान समयकी गरीबी, बेकारी, बीमारी और महँगाई मानवसर्जित होनेके कारण उनका व्याप-विस्तार उत्तरोत्तर बढता ही जायेगा / कोई उन्हें पहुँच नहीं पायेगा / फिर भी, जैन कौममें अति सुखी लोग भी अब बड़ी संख्या हैं / जिससे अपनी छोटी-सी कौमके जैनोंके लिए वे पाँच प्रतिशत प्रमाणमें ही केवल रकम प्रतिवर्ष उपयोगमें लाये तो भी बहुत-सा काम हो सकता है / , ___व्याख्यानकर्ता पुण्यात्मा मुनियोंको चाहिए कि वे जैन श्रीमंतोको इस विषयमें प्रेरणा देकर अधिक जागृत करें / ___ - 'ट्रस्टीविषयक प्रश्रोत्तरी प्रश्न : (150) आपने इस ग्रन्थमें ट्रस्टी बननेकी योग्यताओंका विवरण दिया है / उस अनुसार तो आज किसीमें भी ट्रस्टी बननेकी योग्यता नहीं है। उत्तर : लायक प्राप्त न हो तो, उसके कारण नालायकोंको यदि उस स्थान पर बैठा दिये जायेंगे तो वे ट्रस्ट या संचालनतंत्र बरबाद हो जायेंगे / आजकल सर्वत्र यही बात नजर आती है / धार्मिक क्षेत्रका संचालन शुद्ध और शास्त्रीय ढंगसे किया जाय तो वह व्यक्ति अपार पुण्योपार्जन करता है / / सामान्यतया ऐसा भी कहा जा सकता है कि सुखी सद्गृहस्थ व्यापार में से निवृत्त होकर धार्मिक क्षेत्रोंका संचालन करे तो उनकी शक्ति और समझका सुंदर लाभ मिल पाये / ऐसे मनुष्योंको किसी गीतार्थ गुरु के पासे 'द्रव्य सप्ततिका' का जैसे ग्रंथका अभ्यास करना चाहिए / ट्रस्टी बननेकी योग्यताओंमें कोई कमी हो तो, उसे दूर करनी चाहिए /