________________ 143 चौदह क्षेत्रोंसे संबद्ध प्रश्नोत्तरी गतवर्षकी तिथियोंकी याद दिलायें, पुन:प्रेरणा दें / रकम मामूली होनेके कारण कोई इन्कार नहीं करेगा / शायद इन्कार भी कोई करे तो उतनी घाटेवाली तिथियाँके लिए नये दाता प्राप्त कर लें / वार्षिक खर्च बढ़े तो सौ के बजाय सवा सौ या दो सौ रूपयोंकी तिथि भी निश्चित की जाय / किसी बडे विशेष दिवस पर बारह मासके केसर-बरास, वेतन आदिके चढ़ावे बुलाये जायँ / उस रकमका उपयोग अन्योन्यमें अर्थात केसर पूजामें अधिक हो तो फूलपूजामें किया जाये / फिर भी रकमका घाटा रहे तो देरासरका गुरखा, पुजारीका वेतन, केसर, सुखड आदि पूजाके द्रव्य आदि देरासरविषयक खर्च, स्वप्नादिककी आमदनी वाले कल्पित देवद्रव्यमें उधार लें / उपरान्त गाँवके जैनादिके लग्न आदि प्रसंगोमें, जन्मदिनके समय, संघके दो कार्यकर पहुँचकर, इस विभागके लिए सतत फंडकी माँग जारी रखनी चाहिए / संघकी साधारण विभागकी जगहमें साधारण विभागकी रकममें से दुकानें बनवाकर, उन्हें किराये पर देकर भी अच्छी-खासी आमदनी कर सकते हैं / ऐसी दूकानें हिंसाकी चीजों बेचनेवाले, विलासी साधनों बेचनेवालेको दी न जायँ / जैनोंको प्रथम स्थान-मौका दिया जाय / / प्रश्र : (148) सात क्षेत्रोंका विभाजन, प्रत्येक विभागको ध्यानमें रखकर कैसे किया जाय ? उत्तर : दाताके अभिप्रायानुसार विभाजित करें यदि दाताने सातों क्षेत्रोंके लिए समान भावसे दान दिया हो तो सातों क्षेत्रोमें समान भावसे उपयोग करना चाहिए / सामान्यतया ऐसे आशयसे ही दान होता है / इसी लिए 7 रूपये, 700 रूपये, इस प्रकार विभागके गुणांकवाली रकमोंका दान मिलता रहता है / जब दाताकी ऐसी इच्छा न हो कि सारी रकम, सातों क्षेत्रोमें समान भावसे उपयोगमें लायी न जाय, लेकिन सातोंमेंसे किसी भी एक क्षेत्रमें यथेच्छ उपयोग किया जाय, तो सातों क्षेत्रोमेंसे किसी भी क्षेत्रमें आवश्यकता अनुसार थोडी-बहुत उपयोगमें लायी जाय / ___ प्रश्न : (149 ) साधर्मिकोंके निभावके लिए कोई व्यवस्थित योजना जैन धर्ममें अमलमें लानी चाहिए ऐसा महसूस नहीं होता ? ख्रिस्तीलोग अपने धर्मके अनुयायियोंको किस प्रकार सम्हाल लेते हैं ? . उत्तर : ख्रिस्तियोंकी बात वे जाने / हम भी यदि किसी योजना