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________________ 128 .. धार्मिक-वहीवट विचार जीवन्त रखनेका, सजीव बनाये रखनेका है / दूसरे जीवोंकी रक्षा हो भी सके, न भी हो सके, परन्तु उनकी रक्षा करनेके कार्यमें स्वगुण-करुणाकी रक्षा तो अवश्य होगी / इस प्रकार करुणा गुण तैयार होने पर उसका मालिक अपने मातापिता, पत्नी (या पति) संतान, नौकर आदिके प्रति कभी भी क्रूर या कठोर बन नहीं पायेगा / छोटी बकरी, बकरे या भंड आदिके. प्रति दयाभावका यह सबसे बड़ा लाभ है / उससे उस आदमीका संसार स्वर्गीय बना रहता है। - 'जो दें उसे पाएँ' उस न्यायानुसार जीवोंके प्रति प्रेम देनेवालोंको सभी सगे संबंधियोंकी ओरसे भी लगातार प्रेम प्राप्त होता रहता है / / जीवोंके प्रति करुणा करनेसे अतिशय. पुण्यं संग्रह होता है / वह उदित होकर जीवनको सुखमय बनाता है / / करुणा तो जिनशासनकी कुलदेवी है / उसका सेवन पांजरापोल आदिमें होता है / एक भी गायके पाससे पाँव लीटरकी भी बिना अपेक्षा रखे बिना मूंड, हिरन, कुत्ते, मुर्गे-बीमार या मृत:प्राय- तमामकी ऊँचे दर्जेकी सेवा करना, यह स्वार्थान्ध बनी मानवजातिके लिए आश्चर्यजनक बात है / यह काम जैन ही कर सकते हैं अतः छोटीसी भी भारतकी यह जैन कौम अधिकाधिक सुखी-समृद्ध बन रही है / प्रश्न : (126) जीवदयाविषयक मुकद्दमोंमें अजैन वकील आदिको जीवदयाकी रकममेंसे पारिश्रमिक न दिया जाय ? उत्तर : अलग रकम न दी जाय, तब अवश्य दें / प्रश्न : (127) पर्युषण पर्वके समय कत्लखानोंमेंसे जीवोंको बचानेमें जीवहिंसा माने या जीवदया ? उत्तर : यह प्रश्न उठानेवालेके मनमें जो विचार उत्पन्न हुए होंगे, वे ये हैं कि पर्वके उन दिलोमें जैन लोग जीवोंको मुक्ति दिलाते हैं, ऐसी कसाईओंको जानकारी होनेसे, पशुओंकी किंमत वे बढा देते हैं। अन्य दिवसोंमें जितनी रकममेंसे दस जीवोंकी मुक्ति हो, उतनी रकममेंसे पर्युषण पर्वके दिनोमें एक ही जीवको छुट्टी दिला सकते हैं / उपरान्त एकसाथ बड़ी रकम मिलनेसे कसाईलोग, तेज और अधिक मात्रामें कत्ल करनेवाले अद्यतन यान्त्रिक साधनों छुरों आदिकी खरीदी करते हैं / इसमें जीवदयाकी रकम ही निमित्त बनकर, जीवदयाके बदले जीवहिंसाकी प्रेरक बनती है / ___ यह बात बडी विचारणीय बन जाती है /
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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