________________ 129 चौदह क्षेत्रोंसे संबद्ध प्रश्नोत्तरी पहली बात यह है कि पर्वदिनोमें प्राणियोंको अभयदान करनेका है / अतः धर्मी लोग जीवोंको मुक्ति दिलानेमें ही दिलचस्पी रखते हैं / यदि ऐसा होता हो तो पर्वके निमित्तको लक्षमें लेकर या तो आषाढ मासमें पहलेसे ही जीवोंको मुक्ति दिलायें / उपरान्त, एक ही कत्लखानेमें से पूरी रकम द्वारा जीवोंको मुक्त न कराकर, दूर दूरके दस कत्लखानोंमें से जीवोंको मुक्त करायें / यदि ऐसा हो तो उपरके दोनों दोषोंकी संभवितता दूर हो जाय / सचमुच तो, जीवहिंसाका जो सरकारी तन्त्र है उसे ही ठप्प करने में जीवदयाकी रकमका उपयोग करना चाहिए / ऐसे प्रचंड आन्दोलन होने चाहिए / सर्वोच्च अदालतमें ऐसी 'रीट' अच्छे मानेजाने वकीलों द्वारा पेशकर, मुकाबला करना चाहिए / जिससे सरकारको तमाम कत्लखाने बंद करने पडे / भारतके संविधानकी कतिपय कलमें (५१-अ आदि) भारतके प्राणीमात्रकी रक्षा करनेकी सूचना देती हैं / इसका संदर्भ लेकर लगातार संघर्ष करते रहना चाहिए / तद्विषयक साहित्य बड़ी मात्रामें तैयार करके प्रसारित करना चाहिए / यदि कत्लखानोंमें लगातार बढ़ावा होनेवाला ही हो, तो जानवरोंको छुडानेसे आत्मसंतोष होगा, लेकिन बादमें आन्दोलन करनेकी इच्छा ही न होगी / इस प्रकार सज्जन यदि निष्क्रिय होंगे तो दुर्जन लाभ उठाते रहेंगे / रचनात्मक कार्योंमें ऐसी नज़रबंदी होती है / खंडनात्मक कार्य ही करने चाहिए / वास्तवमें तो खंडनका खंडन (जीवदयाका खंडन यह कत्लखाना स्वरूप है तो कत्लखानेका खंडन) यह मंडन (जीवदया) स्वरूप बन जाता है / इस प्रकार सचमुच तो यह रचनात्मक कार्य बना रहता है / फिर भी यदि उसे खंडनात्मक कार्य कहा जाय तो भी सज्जनोंको उसके प्रति . अरुचि या विरोध न होना चाहिए / उन्हें तो ऐसे आन्दोलनोंके अग्रेसर बने रहना चाहिए. / सज्जनोंकी ध्यान दूसरी ओर ले जानेके लिए, उन्हें आन्दोलनोंसे दूर रखनेके लिए ही कतिपय तथाकथित रचनात्मक कामोंका आयोजन अमलमें है / इसमें भी सज्जनलोग निराश हो जायें तो भारतीय महाप्रजाकी आधारभूत - धा.व.-९