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________________ 126 धार्मिक-वहीवट विचार गोरोंने ! क्यों वे भेट न देते ? अरे सोने से सजा कर दे / उन्हें तो दिलचस्पी है विध्वंसकी ट्रेईनको भगानेमें / कोई उसमें रुकावट न डाले, इस लिए / इसी लिए सदाव्रतोंके साथ बेकारी आदिके मूल कारणोंको भी बिना भूले ईलाज करना आवश्यक है / तभी भारतके किसी भव्य भाविकी आशा बनी रहेगी / गौरवान्वित उसका मृत इतिहास पुनः कब्रमें से उठ खडा होगा / प्रश्न : (122 ) पर्युषणमें प्रभुवीरके वस्त्रदानके प्रसंगको ध्यानमें लेकर प्रत्येक संघमें, उस दिन घर-घर से कपड़े. इकट्ठे कर, गरीबोंमें वितरित करनेसे शासनप्रभावना न होगी ? उत्तर : अवश्य शासनप्रभावना होगी / भादप्रद शुक्ल द्वितीयाके रोज परमात्मा महावीरदेवके चरित्र वाचनमें उन्होंने गरीब मनुष्यको वस्त्रदान किया था, ऐसा सुननेमें आता है तो भादप्रद शुक्ल प्रतिपदाके दिन तक, जैनोंको घरके सारे पुराने वस्त्रादि, संघके कार्यालयमें जमा कराने चाहिए / वे यदि नये सिले-सिलाये कपड़े खरीदकर ला दें तो उन वस्त्रोंका वितरण गरीब साधर्मिकोमें भी किया जाय / यदि संघके युवक भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा तक चारों ओर घूमे, तो ट्रकके ट्रक भरकर कपडे मिलनेकी पूरी संभावना है / इन वस्त्रोंका वर्गीकरण कर युवकोंको झोंपडपट्टियोंमें घूमना चाहिए / परमात्मा महावीरदेवके नामका जयजयकार करते कराते वस्त्रों का वितरण होता रहे तो जैनधर्मको भारी प्रभावना. (प्रशंसा स्वरूप) हो सके / यह कार्य भारतभरके जैनसंघोंमें शुरू हो तो उसका आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त होगा / प्रश्न : (123) हेय और उपादेय अनुकंपा कौन कौन सी है ? उत्तर : जिस अनुकंपाके पीछे बडे आरंभ समारंभ हों, अथवा जहाँ बडी बडी हिंसाएँ होती रहती हों, ऐसी अनुकंपाएँ हेय कक्षाकी मानी जायँ / उससे विपरीत अनुकंपाएँ उपादेय मानी जायँ / कभी जिनशासनकी संभवित हीलनाके निवारणके लिए औचित्यके निमित्त, कोई विशिष्ठ संयोग उपस्थित हो तब विद्यमान सुविहित गीतार्थों के मार्गदर्शनको प्रमाणभूत समझकर चलना चाहिए /
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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