________________ 122 धार्मिक-वहीवट विचार प्रश्न : (114) जैनधर्मको प्रधानता देनेवाले स्कूल, कालिज, विश्वविद्यालयकी आवश्यकता महसूस नहीं होती ? उत्तर : इन सभीके आर्थिक प्रश्न इतने विकट हैं कि ये सभी बिना सरकारी सहायताके चल नहीं सकते / और 'सहायता' (ग्रान्ट)के लेनेके साथ ही 'जैनधर्म' के महत्त्वको बिदा होना पड़ता है / हाँ, मरजियातरूपसे जैनधर्मका वर्ग शुरू किया जा सकता है, लेकिन मरजियातका फरजियात विसर्जन आप ही आप होकर रहता है / ___बाबू पन्नालाल, शकुन्तला, फालना आदि जैनधर्मकी स्कूलोंको अन्तमें क्षीण होना पड़ा है / उपरान्त, ऐसे स्कूल-कालिजोंका संचालन श्रावकसंघ द्वारा गीतार्थों के अनुशासनके पास न जानेके कारण और शैक्षिक ढाँचे द्वारा अन्तमें वेटिकन सीटीके कैथोलिक धर्मगुरु पोपके पास जानेके कारण, इस माध्यमसे जैनधर्मका सही रूपमें हित होनेकी संभावना नहीं है / उसके विरुद्ध भारी नुकसान होगा / अतः कोई धर्मप्रेमी इस प्रवाहमें अपने आपको प्रवाहित न होने ___प्रश्न : (115) अष्टप्रकारी पूजाके चढ़ावेके आधार पर, चढ़ावेके बोर्डकी तरह बारह मासके पाठशालाके चढ़ावे बुलवाकर, प्रत्येक संघमें बोर्ड रखा जाय, तो वह उचित होगा ? . उत्तर : धनवान लोगोंकी धनमूर्छा उतारनेवाली जितनी शास्त्रोक्त योजनाएँ हा, उतनी उच्छी हैं / जिनभक्तिकी तरह पनपनेवाली नयी पीढीके संस्करणका महत्त्व जरा भी कम नहीं / उसके प्रोत्साहनके लिए जो भी योजना करनी पडे, उसे कार्यान्वित करनी ही चाहिए / _ अब तो पाठशालामें प्रतिदिन उपस्थित रहना मुश्किल हो गया है / ऐसी स्थितिमें 'रविवारीय सामायिक शाला' सर्वत्र खोलनी चाहिए / उसमे 14 सालके निम्न उम्रके सभी बालक-बालिकाओंको प्रवेश देकर दो सामायिक कराने चाहिए / उसमें गाथा, स्तवन, स्तुति, प्रायोगिक, कथावार्ता, प्रश्रोत्तरी, वक्तृत्व आदि कार्यक्रमों का संकलन करना चाहिए / प्रत्येक बालकके हिस्से में कम से कम दो रूपये तो जाने ही चाहिए / यदि कोई प्रभावना करना चाहता हो तो स्वयं सपरिवार उपस्थित होकर प्रभावना दे / रूपये दे / मीठाई या चोकलेट (नहीं.:...अभक्ष्य तो नहीं ही दे) दे अथवा अपनी फैक्टरीमें बननेवाले ग्लास, बैग, बोलपेन