________________ चौदह क्षेत्रोंसे संबद्ध प्रश्नोत्तरी 121 प्रश्न : (112 ) पाठशालाके बच्चे, अपनी पाठशालाके हर प्रकारके खर्चके लिए भेंटकूपनें-दो या पाँच रुपयेवाली-वितरित कर, उनके द्वारा लोगोंके पाससे रकम एकत्रित कर सकते हैं ? उत्तर : उसमें कोई हर्ज नहीं / उपरान्त, पाठशालीय बालक-बालिकाओं का संस्कारपूर्ण नाटक आदिके (शास्त्रविरुद्ध) कार्यक्रम द्वारा भी उंड एकत्रित किया जाय / बारह मासका शिक्षकवेतन भी लिखाया जाय / प्रभावनाफंड भी इकट्ठां किया जाय / उसमें प्रमुख, अतिथिविशेष, मुख्य मेहमान, विशेष आमंत्रित मेहमान आदि जैसे पद, उस कार्यक्रमके समारंभके प्रारंभमें ही देकर, उनके द्वारा भी अच्छी रकमोंके दानोंकी घोषणा करवायी जाय / इसके लिए व्यवसायी अभिनेताओंके या नाटकोंके शो रखे न जायें / दान प्राप्त करनेकी यह अधम रीत है / संस्थाका भी उसमे अवमूल्यन होता है / उपरान्त, प्रति रविवार बालक-बालिकाओंका समूह सामायिक का आयोजन किया जाय / उसमें प्रभावना-दाता तैयार करें / वे स्वयं सहपरिवार उपस्थित हों और अपने हाथों, अपनेको उचित लगे उस प्रकार यथाशक्ति प्रभावना-नगद या चीजके रूपमें दे / ऐसा कार्यक्रम देखकर दूसरे भी प्रभावनादाता बनने तत्पर होंगे / उनकी 'क्यू' लगेगी / बावन रविवार देखते ही देखते आरक्षित हो जायेंगे / इसमें फंड एकत्र करनेकी झंझट न होगी / हिसाब-किताबकी चिन्ता न रहेगी / और नित्यन्तन चीजें बच्चोंको मिलती रहेंगी, जिससे बच्चोकी हाजिरी बढ़ती जायेगी / प्रश्न : (113.) स्कूलकी तरह पाठशालामें भी बच्चोंके पाससे फीस ली जाय तो कोई आपत्ति होगी ? आर्थिक समस्या थोड़ी हल हो न पायेगी ? ... उत्तर : अरे, यह तो हमारे स्वार्थके लिए पाठशालाएँ चालू रखकर बच्चोंको धर्मकी शिक्षा और संस्कार देनेका काम करनेका हैं / वालिदलोग तो इस विषयमें जरा भी गंभीर नहीं हैं / उनके दिमागमें स्कूल, लेसन, ट्यूशनका ही बोलबाला है / उसके लअभागकी भी धार्मिक शिक्षाकी महत्ता, उन्हें महसूस नहीं होती / ऐसी हालतमें फिस लेनेकी बात तो दूरकी रही, लेकिन “पाठशालीय बच्चोंकी स्कूलकी फीस पाठशालाकी ओरसे दी जायेगी" ऐसा आयोजन करनेकी नौबत आ पड़ी है / स्कूलकी किताबें, नोटें आदि तो, कई पाठशालाएँ देने भी लगी हैं /