________________ 120 धार्मिक-वहीवट विचार -पाठशाला - प्रश्नोत्तरी (9) प्रश्न : (109) टी.वी. आदिके झंझावातमें पाठशालाएँ टूट चूकी हैं / कहनेमात्र चलती हैं / क्या करें ? उत्तर : घर घर पाठशाला / घर घर बा-शिक्षिका का मूलभूत कार्यक्रम पुनः शुरू किया जाय / वह संभवित न हो तो, पाठशालाके लिए भारी वेतन और उत्कृष्ट प्रभावनाके लिए बड़ा फंड एकत्रित किया जाय / प्रतिमासके वेतनके, प्रतिमासकी प्रभावनाके दाता प्राप्त करे / ___'अच्छे' कोई नहीं मिलते, यह बात सही है / लेकिन वे नामशेष भी तो नहीं हुए / यदि अच्छा वेतन देनेकी तत्परता हो और सन्मानपूर्वक मनुष्यको निभानेकी तत्परता हो तो अच्छे शिक्षक-यद्यपि दुर्लभ हैं - फिर भी आज भी सुलभ हैं / उसी प्रकार भारी प्रभावना (प्रोत्साहन)- एक गाथा कंठस्थ करने पर एक रूपया-महिनेमें पच्चीस दिवसोंकी उपस्थितिवालेको प्रतिमास 20 रूपये, तीन मासके बाद यात्रा प्रवास जैसी कोइ आयोजन किया जाय तो बच्चे टी.वी.की ‘ऐसी तैसी' कर स्वयं ही पाठशालाओंमें दौड आयेंगे / प्रत्येक संस्था इस बातकी गाँठ बाँध ले कि बड़ी रकमके फंडके सिवा, अब निर्वाह होना मुश्किल है / प्रश्न : (110) देवदेवताके भंडारमें से पाठशालाओंके लिए रकम का उपयोग किया जाय ? उत्तर : वेतन दिया जाय / पुस्तकें खरीदी जायँ / प्रभावना की जाय / खानेकी चीजोंके अलावा अन्य किसी भी चीजकी प्रभावना की जाय, तो यह उचित होगा / प्रश्न : (111) ज्ञानविभागकी रकममेंसे पाठशालाकी पढाईकी किताबें लायी जा सकती हैं ? उत्तर : नहीं / कभी नहीं / वालिद लोग ही उसकी व्यवस्था करें / ज्ञानविभागकी इस रकम का उपयोग श्रमण-श्रमणियोंके लिए ही किया जाता है / इसी लिए पाठशालाके पंडितोका वेतन, ज्ञानविभागमेंसे दिया नहीं जाता या बच्चोंको पुरस्कार भी दिया नहीं जाता / हाँ, यदि ऐसे कामोंके लिए ही किसी दाताने रकम भेंट दी हो तो उसका उपयोग, उसी कार्यके लिए किया जाय /