________________ 118 ___ धार्मिक-वहीवट विचार भी यथाशक्य गरीबोंके लिए सहायक बनना चाहिए / यदि ऐसा न किया जाय तो धर्माचरण करनेवाले, धर्मकार्यमें ही धनका व्यय करनेवाले पुण्यशाली धनवान, लोगोंकी नजरमें आयेंगे / उनके धर्मकी भारी निन्दा होगी / इस निन्दाके निवारणके लिए भी दीन-दुःखियोंके प्रति बिना भेदभावके पुण्यशाली धर्मी लोग अनुकम्पा अवश्य बनाये रखें / - पौषधशाला-प्रश्रोत्तरी (8) . .. प्रश्न : (105) वैयावच्चकी रकममेंसे विहारके निर्जन मार्गों पर बनवाये गये उपाश्रयोंमें आवश्यक बालदी, परात आदि की खरीदी कर सकते है ? उत्तर : अवश्य, उसमें कोई हर्ज नहीं / उसका उपयोग केवल साधुसाध्वियोंके लिए ही हो, उसकी चौकसी रखें / दानप्रेमी गृहस्थ ऐसा लाभ उठाये, तो वह प्रथम विकल्प होगा / प्रश्न : (106) उपाश्रयके निभावके आयोजनके लिए, साधके उपाश्रयमें बहनोंके चित्र और साध्वीके उपाश्रयमें भाइयोंके चित्र दीवारों पर रखना उचित है क्या ? उत्तर : सामान्यतया साधु-साध्वियोंके निवास रूप उपाश्रयोमें गृहस्थोंके चित्र रखना जरा भी उचित नहीं, फिर भी चित्र रखने ही हों तो साधुओंके उपाश्रयमें पुरुषोंके और साध्वियोंके उपाश्रयमें बहनोंके उचित वेशभूषायुक्त चित्र रखे जायें / चित्र इस प्रकार दीवार पर लगाये जाय, जिससे पक्षी वहाँ अपने घोंसले बना न पाये / प्रश्न : (107) साधारण विभागमें आय पैदा करनेके लिए आज कई जगह ट्रस्टी लोग, उपाश्रयका उपयोग, लग्नकी वाडीके रूपमें किराये पर करते हैं / क्या यह उचित है ? उत्तर : नहीं / जरा भी उचित नहीं / प्रत्येक वस्तुका धनको लक्ष्य कर मूल्यांकन किया न जाय / एक पवित्र स्थानका, अपवित्र कामोंके लिए उपयोग किया जाय तो, उसमें प्रसारित पवित्रताके परमाणु बिखर जायेंगे / उसके प्रभावमें आये साधुका दिमाग भी खराब हो जाय / वह गंभीर भूल कर सकता है / शायद मुनिजीवन भी छोड़ दे / लग्नकी वाडीके रूपमें उपयोग करने पर उत्पन्न