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________________ 110 धार्मिक-वहीवट विचार अधिक महत्त्व देना चाहिए / इस कामके लिए धन तो बहुत-सा मिल पायेगा / अतः यदि स्थिर निवासकेन्द्रमें दो-तीन उत्तम सेवाभावी व्यक्ति जुड़ जाय तो, इस काममें भारी सफलता मिलेगी / प्रश्न : (92) वर्तमान समयमें गुरुमंदिर बनाना उचित है क्या ? उत्तर : केवल गुरुमंदिर बनाना उचित नहीं है / ऐसे कई गुरुमंदिर दृष्टिगोचर होते हैं, जो मुहल्लेके सुमसाम स्थानमें या गाँवसे बाहर स्मशानभूमिमें होनेके कारण उनकी अच्छी तरह देखभाल नहीं की जाती, जहाँ अधिक गंदगी होती है और जुआ आदिका उपद्रव बना रहता है / / बनाना ही चाहे तो गुरुमंदिरका निर्माण इस प्रकार करें, जिसके बड़े, खण्ड का उपयोग प्रवचन आदि कार्यों के लिए उपयोगमें आ सके / उस खण्डके एक कोने में गुरुमूर्तिकी स्थापना हो / इस समग्र इमारतको स्मृतिमंदिर माना जाय / प्रश्र : (93) जैनोंकी आबादीवाले बिनाके गाँवोमें गुरुवैयावच्चकी रकममेंसे साधु साध्वीके लिए रसोईघर निभाये जायें ? डोलीवालेको, देखभाल करनेवाले आदमी वगैरहको भोजनादिकी व्यवस्था गुरुवैयावच्चकी रकममेंसे की जा सकती है ? उत्तर : विहारके क्षेत्रोंमें साधु-साध्वीजियोंके लिए ही उपाश्रयोंकी तथा रसोईघरोंकी व्यवस्था स्थान स्थान पर की हुई दृष्टिगोचर होती है / ये दोनों 'आधा कर्म' दोषपूर्ण होनेसे साधु-साध्वियोंके लिए अनिवार्य संयोगके सिवा त्याज्य है / फिर भी, उसका उपयोग कई साधु-साध्वीयोंको विवश होकर करना पडता है / हाँ, अब भी कई साधु-साध्वी हैं, जो इन दोनों बातोंका, विशेषकर रसोईघरका उपयोग नहीं करते / अजैनोंमें जानेसे जो भी मिल पाये-रोटे आदिसे निर्वाह कर लेते हैं अथवा लंबेचौडे विहारकर उन दोषों से बच पाते हैं / ऐसे रसोईघरके लिए गुरु-वैयावच्च खातेकी रकमका उपयोग किया जाय / उपरान्त अजैन डोलीवाले आदिको यह रकम मजदूरीके रूपमें दी जा सकती है / उसी प्रकार उनके भोजनादिमें भी इस रकमका उपयोग किया जाय, परंतु साथ रहे जैनकी व्यवस्था साधारण खातेमेंसे अलग की
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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