________________ 107 चौदह क्षेत्रों से संबद्ध प्रश्नोत्तरी हो वहाँ भी 'आदि' शब्द तो 'नव्य-चैत्यकरण' शब्दके साथ ही रखा अब 'आदि' शब्दसे किसका संग्रह करें ? जीर्णोद्धार और नव्यचैत्यकरणके बाद उसे ही आदि शब्दसे ग्रहण किया जाय जो 'गौरवार्ह स्थान' हो ऐसा वहाँ कहा है / तो गुरुद्रव्यसे ऊँचेके विभाग-जिनमें ज्ञान-विभागका भी समावेश है, उसे गौरवाह स्थान क्यों न कहा जाय ? इस प्रकार गुरुद्रव्यका ज्ञानविभागमें उपयोग करनेके लिए संमति देनी होगी / उपरान्त, गुरुपूजा करनेवाले श्रावकोंके लिए गुरु (साधु-साध्वी) भी गौरवाह स्थान है, उनका भी संग्रह करना होगा / यदि गुरु वैयावच्चका स्थान भी 'आदि' शब्दसे गृहीत हो तभी 'श्राद्धजित कल्प में गुरुद्रव्यकी चोरी करनेवालेको प्रायश्चित्त रुपमें उतनी रकम गुरु-वैयावच्च करनेवाले वैद्य आदिको वस्त्रादानादि रूपमें देनेकी जो बात कही है, वह यथार्थ हे / यदि गुरुद्रव्य देवद्रव्यमें ही ले लिया जाता हो तो, गुरुद्रव्यकी चोरीकी रकमके प्रायश्चित्त रूपमें उतनी रकम देवद्रव्यमें ही उपयोगमें लानेके लिए वहीं सूचित करते / जबकि गुरु-वैयावच्चमें यदि उस रकमको प्रायश्चित्तरुपमें जमा करानेके लिए सूचित किया है तब यह बात शास्त्रपाठसे यथार्थतया सिद्ध होती है कि गुरुद्रव्यके उपयोगका स्थान गुरु-वैयावच्च भी है / ___ अब समझमें आयेगा कि विक्रमराजा आदिके दृष्टांतो द्वारा (विविध परंपराके रूपमें) गुरुद्रव्यका उपयोग जीर्णोद्धार आदिमें किया जा सकता है / जबकि उन दृष्टांतोके उपरान्त शास्त्रपाठके स्पष्ट शब्दों द्वारा गुरु वैयवच्चमें उपयोग किया जा सकता है / गुरु वैयावच्चके समर्थक, उपरि विभागके रूपमें जीर्णोद्धारमें उसका उपयोग कर सकेंगे / और जीर्णोद्धारके समर्थक 'आदि' शब्दका स्वीकार करके गुरु-वैयावच्चको भी मंजूर कर सकते हैं / यदि वे ऐसा स्वीकार न करें तो प्रायश्चित्तका विधिगत विधान (वैद्यादिका) असंगत-अप्रस्तुत हो जाय / जीर्णोद्धारमें ही यदि उस रकमका उपयोग किया जाता हो तो वैद्यको देनेका समर्थन कैसे किया जाय ? अतः इस प्रकार दोनों पक्षोंकी मान्यताओंका समन्वय करना, यही उभयपक्षके लिए हितावह मालूम होता है / - पू. बापजी म. (सिद्धिसूरि म. सा.)के पू. भक्तिसूरि म. सा. पर लिखे पत्रमें गुरुपूजनके द्रव्यको, डोली उठानेवाले आदमी आदिको देनेका