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________________ 106 धार्मिक-वहीवट विचार . अन्यथा यदि अपने अपने वतन आदिमें संघशाही रूपसे स्थिरवास करें तो पूरी निश्चिंतता बनी रहती है / भूतकालमें ऐसी ही व्यवस्था थी / प्रश्न : (90) गुरुपूजनकी रकम कहाँ जमा हो ? इस विषयमें शास्त्रपाठ और परंपरा दोनों द्रष्टिगोचर होते हैं / तो हम क्या करें ? उत्तर : गुरुकी पूजा भूतकालमें वस्त्रादिसे होती थी / फिर भी विक्रम, कुमारपाल आदि राजाओंने सुवर्ण आदिसे पूजा की / अतः गीतार्थ आचार्योने वस्त्रादि दानको भोगार्ह गुरुद्रव्य बताया, लेकिन सुवर्णादि दानको पूजार्ह गुरुद्रव्य कहा / सुवर्णादिका सीधा गुरु उपभोग न कर सके, छू भी न सके; अतः उसके भोगार्ह गुरुद्रव्यके रूपमें निषेध किया / इन राजाओंने सुवर्णादिसे पूजा की / बादमें गुरुओंसे पूछा गया कि "इसका क्या उपयोग करें ?' उत्तरमें सिद्धसेन दिवाकरसूरजीने 'जीर्णोद्धार आदि' उपयोग करनके लिए कहा अथवा कहीं गुरुदेवने साधारण विभागके डिब्बेमें (भद्रेश्वरसूरिजीकृत 'कहावली' तथा 'प्रभावकचरित्र में) ले जानेके लिए प्रेरणा दी / कहीं (प्रबंधचिंतामणिमें) गरीब लोंगोको ऋणमुक्त कर देनेके लिए सूचित किया है / / पूज्य पादलिप्तसूरिजीको राजाने वस्त्रोंका दान किया था / वे वस्त्र ब्राह्मणोंको दिलाये थे / . आग्रामें पू. महोपाध्यायजी यशोविजयजी म. सा.के चरणमें, आग्रासंघने सातसो रूपये रखे थे / (देखें, सुजसवेलिरास, दूसरी ढाळ) पूज्य श्रीकी सूचनासे इस रकमका उपयोगकर पुस्तकें बनवाकर छात्रोंमें वाँट दिये गये थे / 'आगराई संघ सार, रूपैया सातसे हो लाल, मूके करी मनहार, आगे जसने पगे हो लाल, पोठां पुस्तक तास कराय, उमंगस्युं हो लाल, छात्रोंने सविलास, समाव्या रंगस्यं हो लाल' इससे यह कह सकते हैं कि गुरुद्रव्यके लिये जो परंपरा आगे की जाती है, उसमें जीर्णोद्धारमें उपयोग करनेकी परंपरा नहीं है / उपरके पाठ तो 'गुरुद्रव्यको देवद्रव्य के रूपमें बिलकुल मान्य ही नहीं करते / उपरान्त, जहाँ गुरुद्रव्य जीर्णोद्धारमें उपयोग करनेका सूचन किया
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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