________________ 104 धार्मिक-वहीवट विचार __ - साधु साध्वी (4 + 5) प्रश्नोत्तरी प्रश्न : (83) गुरुके चरणोंकी द्रव्यसे पूजा, गुरुको कम्बल वहोरानेका घी आदिकी रकमें किस विभागमें जमा की जाय ? उत्तर : ' श्राद्धजित कल्प'में निर्दिष्ट प्रायश्चित्तविधि अन्तर्गत पाठानुसार यह रकम गुरु-वैयावच्च विभागमें जमा होगी / जबकि विक्रमराजा आदिके द्रष्टान्त लेकर, कतिपय समुदाय, इस रकमको केवल देवद्रव्यमें जमा करनेका सूचित करते हैं, यह युक्तिसंगत मालूम नहीं होता / गुरुकी जो भी वैयावच्च हो - उन्हें औषध देना, डोली उठाना, सेवाके लिए आदमीकी व्यवस्था करना, विहारमें जहाँ श्रावकोंके घर ही नहीं हो वहाँ वैयावच्चरूपमें भोजनशाला चलाना आदि कामोंके लिए इस रकमका उपयोग किया जाता है / कई लोग कहते हैं कि 'उदरमें जानेवाली कोई चीज इस रकमसे खरीदी न जाय / ' यद्यपि. वर्तमानमें तो ऐसा व्यवहार द्रष्टिगोचर होता है कि इस रकमका उपयोग पेटमें जानेवाली वस्तु-औषध या आहारपानी-के लिए ही किया जाता है / इस विषयमें गीतार्थ महापुरुष योग्य निर्णय करें ऐसी अपेक्षा है / प्रश्न : (84) कालधर्मविषयक उछामनीकी रकम किस विभागमें जमा की जाय ? उत्तर : भूतकालमें ऐसी उछामनीकी बोली न होती थी, अत: उसका शास्त्रपाठ प्राप्त नहीं होता / यदि नयी पद्धतिका आरंभ किया जाय तो उसमें परंपरा देखी जाय अथवा वर्तमानकालीन गीतार्थ आचार्योंके निर्णयको मान्य करें / वह निर्णय हमेशा शास्त्रसापेक्ष ही कहा जाय / कालधर्मकी उछामनी, गुरुभक्ति स्वरूप होनेसे कभी गुरुमंदिर बनाने में अथवा जिनभक्तिमें ली जाती है / कभी उपाश्रयके निर्माणमें तो कभी जीवदयाके कार्योंमें लगायी गयी है / कभी गुरुवैयावच्च विभागमें (खानेके अलावा) लगायी गयी है / ____ प्रश्न : (85) गुरुवैयावच्चकी रकममेंसे गुरुकी कौनसी वैयावच्च की जाय ? उत्तर : गुरुकी ग्लान अवस्थामें, उनके लिए आवश्यक सभी बावतोंका खर्च, इस रकममेंसे किया जाय / डोलीवालेका वेतन, अजैन मानवकी आवश्यकता पड़ने पर उसका वेतन दिया जाय / उपरान्त कपड़े, पात्र आदि उपधि भी लायी जा सकती है /