________________ चौदह क्षेत्रोंसे संबद्ध प्रनोत्तरी 103 प्रश्न :- (80) साधु-साध्वी किस प्रकारकी पुस्तकोंका प्रकाशन ज्ञानविभागमेंसे करवा सकते हैं ? उत्तर : मुख्यतया, प्राचीन ग्रंथोंका प्रकाशन योग्य माना जाय अथवा ऐसे ग्रंथोंका भाषान्तर अथवा विवेचनात्मक ग्रंथोका प्रकाशन भी उचित होगा / लेकिन बिल्कुल नये जमानेके रिवाजवाले धार्मिक कहलानेवाले अपने व्याख्यानोंकी किताबोंका प्रकाशन, ज्ञानविभागकी रकममेंसे कराया न जाय, तो अच्छा होगा / कोई चारा न हो तभी ज्ञानविभागकी रकमका उपयोग करें / किताबोंकी बिक्री हो जाने पर, सूदके.साथ ली हुई रकमको ज्ञानविभागमें जमा करा दें / लेकिन ऐसा करनेकी अपेक्षा गृहस्थोंके पाससे ही दानस्वरूपमें रकम प्राप्त कर, प्रकाशन कराना ही उचित होगा / प्रश्न :- (81) संस्कृत आदिकी शिक्षा दिलवाकर अजैन व्यक्तिको पंडित बनानेके लिए, सारा खर्च ज्ञानविभागके रकममेंसे किया जाय ? भविष्यमें पंडित बनकर वह व्यक्ति कई साधु-साध्वीयोंको सुशिक्षित करे, यह बड़ा लाभ नहीं है ? उत्तर :- अवश्य, उसमें कोई आपत्ति नहीं / वह खर्च उसके लिए योग्य वेतनके अनुपातमें होना चाहिए / अथवा उसकी विशिष्टताके अनुसार होना चाहिए / चाहे कुछ भी हो, आखिरमें वह ज्ञानविभागकी रकम है / अतः उसका अमर्यादित उपयोग तो हो ही नहीं सकता / साथ ही कंजूसाई न की जाय / उपरान्त, वह व्यक्ति भविष्यमें हमेशाके लिए पंडितका ही व्यवसाय करे, ऐसी विश्वसनीयता होनी चाहिए / आजकल तो अन्य व्यवसाय मिलते ही कई पंडित, अपना मूल व्यवसाय छोड देते हैं / प्रश्न : (82) ज्ञानविभागकी रकमसे बने ज्ञानभंडारमें बैठकर साधु. साध्वी या गृहस्थ पुस्तक पठन या भोजनादि कर सकते हैं ? उत्तर : अवश्य, ज्ञानविभागकी रकमसे बने ज्ञानभंडारमें पुस्तकपठन या स्वाध्याय आदि साधु-साध्वी कर सकते हैं; परन्तु भोजनादि कार्य नहीं कर सकते / ऐसा काम गलतीसे भी कभी हो गया हो तो, उतने दिनोंके किरायेकी रकम ज्ञानविभागमें जमा करानेकी व्यवस्था गृहस्थके पास करानी चाहिए /