________________ 102 धार्मिक-वहीवट विचार - तिब्बतके लेह नगरमें इस प्रकार एकत्रित अति मूल्यवान दस हजार किताबें, एक ही बममारीसे साफ हो गयी थीं / जिससे तिब्बती प्रजाकं गहरी चोट लगी थी / प्रश्र : (77) वर्तमानकालीन महात्माओंके जीवनचरित्र, ज्ञानविभागकी. रकममेंसे मुद्रित किये जायँ ? उत्तर : विशेषकारणके अलावा और गीतार्थ सुविहित गरूओंकी संमतिके बिना, मुद्रित किया जाय वो उचित नहीं / ऐसेकार्य करनेही हो तो गृहस्थोंके धनसे करने चाहिए / प्राचीनकालके महागीतार्थ महापुरुषोंका साहित्य अति मूल्यवान है / वह नष्ट न हो जाय, उसकी रक्षाके लिए ही इस विभागको रकमका उपयोग हो, वही उसका श्रेष्ठ उपयोग है / प्रश्न : (78) जहाँ-तहाँ संघोंमें ज्ञानविभागकी बड़ी रकम जमा है, उसे एकत्रित कर, उसका सर्वोत्तम उपयोग कैसे किया जाय ? उत्तर : यदि ज्ञानविभाके लाखों रूपये योग्य स्थान पर एकत्रित हो सके तो मुंशी तैयार करनेके लिए अजैन मुंशियों के लिए शाला खोलनी चाहिए / उसके बाद उन्हें तैयार करनेके बाद ढ़ेरों श्रुतलेखन कराना चाहिए / विद्वानोंको वेतन देकर उसकी छानबीन करानी चाहिए / इसके लिए उत्तमकोटिके दीर्घकालीन कागज, विशेष प्रयत्न कर गृहस्थलोग द्वारा कश्मीर आदि स्थानों पर बनवाने चाहिए / ऐसा होने पर ही सम्यग्ज्ञान बच पायेगा / मेरी श्रुति अनुसार विविध भंडारोंमें दस लाख हस्तलिखित प्रतियाँ ऐसी हैं, जिसकी पोथी कभी खोली नहीं गयी / यह सारा श्रुत (ज्ञान) कालकी आँधीमें नष्ट हो जायेगा और भावि जैनसंघ निराधार हे जायेगा / प्रश्न : (79) मुंशियोंको प्रतियाँ लिखानेका सिखानेके लिए ज्ञानविभागमेंसे मुंशीशाला खोली जा सकती है ? नये मुंशी बनते छात्रोंक भोजनादि खर्च ज्ञानविभागमेंसे किया जाय ? उत्तर :- अवश्य, यह सब कुछ हो सकता है, लेकिन वह मुंश अजैन होना चाहिए / उपरान्त उस मुंशीको भोजनखर्च दिया जाय वह उसके वेतनमें समाविष्ट हो / ऐसा कोई आयोजन हो, यह अत्यन्त जरूरी है नहीं तो दीर्घायुषी हस्तलेखन साहित्य बंद हो जायेगा / झेरोक्स य मुद्रणका आयुष्य अल्पकालीन होता है /