________________ . 100 धार्मिक-वहीवट विचार ___ यह जेरोक्स मशीन है / उससे यन्त्रवादको उत्तेजन प्राप्त होता है / उपरान्त, इस प्रकार होनेवाले मुद्रण चिरंजीव नहीं होता / जबकि विधिपूर्वकी साही कागज आदि यदि तैयार किया जाय और मुंशीके पास लिखवाया जाय तो वे ग्रंथ ७००से 800 वर्ष तक टिक सके / यद्यपि मुंशियो द्वारा लिखाये गये ग्रंथोका शुद्धीकरण-कार्य बेहद कठिन है; परन्तु साध्विजियोंको ऐसा श्रुतभक्तिका कार्य सुप्रद किया जा सकता है / फिर भी यदि कामचलाउ रूपमें तात्कालिक 'ज्ञान'को टिकानेके लिए 'जेरोक्स' आदिका सहारा लेना पडे, तो उसे 'अनिवार्य' समझकर लें; लेकिन उसे 'आवश्यकता' तो न माने / / यदि एक साथ साधु-साध्विजियाँ प्रतिदिन 50 श्लोकोंके हिसाबसे लिखते रहे तो दस वर्षों में प्राचीन साहित्यके लाखों श्लोकोंका लेखन पूरा हो सके / प्रश्न : (72) जैनधर्मके प्राणतत्त्व दो हैं : जिनमूर्ति और जिनागम / तो जिनागमोंकी दीर्घकालीन और रक्षाका उपाय क्या हैं ? उत्तर : फौलादी कैप्स्यूलोंमें सम्यगज्ञानको भरकर धरतीमें 50 फूटसे भी ज्यादा गहराईमें उतारा जाय तो रक्षा होगी / चाहे वैसी बममारी हो तो भी हानि नहीं पहुँचेगी / - इससे भी उत्तम उपाय एक है / ज्ञानको जीवनके साथ आत्मसात् कर दें / पचा दें / उत्सर्ग, अपवाद, ज्ञान, क्रिया आदि सर्व नय जिन्होंने आत्मसात् किये हैं, वे सुविशुद्ध चारित्रधर महात्माओंकी पीढी-ब-पीढी आगे बढती जो ज्ञानमयता महात्माओमें होगी, वही ज्ञानरक्षाका सर्वोत्कृष्ट उपाय है / प्रश्न : (73) ज्ञानविभागकी रकमके किताबोंका पठन श्रावक कर सकते हैं ? उत्तर :- अवश्य, पठन कर सकते हैं, लेकिन पुस्तककी पढाईसे होनेवाले घिसाई निमित्त यदि वर्षमें एकबार योग्य रकम (नकरा रूपमें) ज्ञानविभागों समर्पित करें तो वह उत्तम होगा / बाकी उस पुस्तक पर अपनी मालिकियतका दावा तो नहीं हो सकता / यदि कोई साधु-साध्वी उसे पुस्तक रखनेके लिए सोंपे उसे पूछ लेना चाहिए कि वह पुस्तक ज्ञानविभागकी तो नहीं है न ? वास्तवमें तो मुनियोंको ऐसी किताबें ज्ञानविभागकी रकमसे छपवानी नहीं चाहिए, जिनकी बिक्री हो न पाये / जिन्हें समूहरूपमें जिसतिसको