________________ चौदह क्षेत्रोंसे संबद्ध प्रश्नोत्तरी जैनधर्मकी जगतमें इतनी बड़ी प्रभावना हो, यह कोई मामूली धर्म नहीं / सभी धर्मों में बढ़ा-चढा यह धर्म है / इसी लिए जैनधर्मकी निंदा हो, ऐसा कोई कार्य अनजानेमें भी न होने पाये, उसके लिए सयाने जैनलोग अत्यन्त सावधान-चौकन्ने बने रहते हैं / ऐसी धर्मनिन्दाके निवारणके लिए, जो भी उचित करना पडे, उसे करनेकी जैनशास्त्रोंने संमति दे दी है / अलवत्ता, देवद्रव्यकी संपत्तिका दुष्काल निवारण निमित्त उपयोग कर, जैनधर्मकी प्रशंसा करनेकी बात उचित नहीं, क्योंकि उसको बिना कुछ छुए भी जैनधर्मके श्रीमंतलोग, अपनी संपत्तिका सदुपयोग ऐसे कार्यों में आसानीसे कर पाये ऐसे है / इस प्रकारके दोनों काम सधते हैं / अतः दूसरा मार्ग सोचना, योग्य नहीं है / - जिनागम (3) प्रश्नोत्तरी प्रश्न : (69) ज्ञानपूजन और गुरुपूजनकी पेटी एक ही होती है / जिसमें दो खाने रखे जाते हैं / उनके पर दो नाम लिखे रहते हैं / इसमें एक विभागकी रकमका उपयोग दूसरे विभागमें होनेकी संभावना अधिक नहीं है ? . . उत्तर : यदि ऐसी संभावना हो तो बिल्कुल अलग अलग पेटियाँ (मंजूषाएँ) बनाकर अलग अलग स्थान पर रखी जायँ / प्रश्न : (70) ज्ञानविभागकी रकमका उत्तम उपयोग किस प्रकार किया जाय ? ___ उत्तर : जिनागम (पंचांगी) लिखाने में और साधु-साध्विजीयोंको उन्हें पढानेके लिए अजैन पंडितोंकी वेतन देकर नियुक्त करनेमें, इस रकमका श्रेष्ठतम उपयोग हुआ माना जाय / . प्रश्न : (71) लिखनेवाले (मुंशी) मिलतें नहीं; तो 'जेरोक्स' आदिकी सहायतासे आगम आदि ग्रंथोका मुद्रणकार्य किया जा सकता उत्तर :- लिखनेवाले यदि न मिलतें हों तो, उनके लिए शाला शुरूकर, उन्हें तैयार करने चाहिए / श्रीमंत यदि धनमूर्छा कम करेंगे तो यह काम अशक्य नहीं / आज भी कई मुनि इस कार्यके प्रेरक बने हुएँ है और यथाशक्ति काम हो रहा है /