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________________ धार्मिक-वहीवट विचार है / इसमें अपने अहंकारकी तुष्टि होनेकी संभावना अधिक है / - 'दया धरमका मूल है / ' ऐसी तुलसीदासजीकी बात बिलकुल यथार्थ है, लेकिन दयासे भी बढाचढा दूसरा गुण है कृतज्ञता / ___ अपने उपर दूसरे लोंगोने जो उपकार (दया) किया है, उसे याद कर उनके प्रति बहुमान व्यक्त करना, उनकी अनेक प्रकारकी सेवा करना, यह सबसे बड़ी बात है / उपरान्त, यह बात मुश्किल इस लिए है कि एसी कृतज्ञता व्यक्त करनेमें अपने अहंकारका नाश करना पडता है / जहाँ अहंकार खत्म हो जाय या कमजोर हो, उसे सबसे बड़ा धर्म कहा जाय / तारक परमात्माने विश्वकी असारता-व्यर्थताका परिचय कराकर हमारे उपर भारी उपकार किया है / जगतके पदार्थोके प्रति उत्पन्न तीव्र आसक्ति पर इस प्रकार रोकथाम लगायी हैं / हमें हेवान या शयतान बननेसे बचाये हैं / हमें इन्सान और महान बनायें है / ऐसे अत्यन्त अनुग्रह करनेवाले परमात्माके प्रति कृतज्ञताभाव व्यक्त करनेके लिए ही संसारी जीवोंकी सर्वाधिक प्रिय वस्तु धनकी मूर्छा त्याग किया जाता है / उस धनसे परमात्माकी भक्ति होती है / . इससे यह कह सकते हैं कि सामान्य परिस्थितिमें जीवदयाकी अपेक्षा प्रभुभक्तिमें धनका उपयोग करनेसे अधिक लाभ होता है / लेकिन सावधान ! ऐसी परिस्थितिका भविष्यमें निर्माण हो तो, इस बातको उलटानी भी होगी / . मानों कि भयंकर सूखा पड़ा / हजारो मानव और प्राणी अकालमें फँस गये / चारों ओर उनकी लाशोंके ढेरके ढेर लग गये / ऐसे समय परमात्माका भक्तिका कोई आयोजनकर अथवा मंदिरका निर्माण कर लाखों रुपयोंका व्यय,कोई जैनभाई कर, उसकी अपेक्षा अकालके दुःखोंके निवारण निमित्तमें व्यय करे वह तो अधिक उत्तम होगा / यदि वह ऐसा करेगा तो अजैन लोगोंमें जैनधर्मकी भारी सराहना होगी / इस सराहनाको जन्मान्तरमें जैनधर्मकी प्राप्ति करानेमें बीजरूप मानी गयी है / यह कितना बडा लाभ आखिरमें तो हमारे प्रियतम ऐसे भगवानको सभी जीव प्रियतर थे / हमारे प्रियतमके जो प्रिय हों वे हमारे लिए कितने अधिक प्रिय होते हैं /
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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