________________ चौदह क्षेत्रोंसे संबद्ध प्रश्नोत्तरी 97 ___ 'संबोध प्रकरण' आदि ग्रंथोंमें देवद्रव्योंके तीन भेद बताये गये हैं / कई पूजनीय महापुरुषोंने उसे समर्थन भी दिया है / उसी प्रकार हर जगह संचालन करनेका आग्रह किया है; लेकिन आज तक उस प्रकारका संपूर्ण संचालन शुरू हो नहीं पाया / हालमें तो देवद्रव्यकी एक ही थैली रखी जा रही है / . प्रश्न:- (67) कम वेतन केकारण पूजारियाँ अपने परिवारको पूरा भोजन न दे पाये ऐसी स्थितिमें उन्हें देवद्रव्यमेंसे वेतन दिया जा सकता है ? यदि नहीं, तो वे देवद्रव्यकी चोरी अवश्य करेंगे ही / उत्तर :- जैसे पुजारीके वेतनके लिए स्वद्रव्यकी सुविधा गृहस्थलोग न कर पाये तो देवद्रव्यमेंसे भी उन्हें वेतन देकर प्रभु-पूजा आदिकार्य जारी रखनेकी बात सर्वमान्य है / वैसी हो यह भी बात है कि यदि स्वद्रव्यकी रकम कम होने पर (भारी महँगाईके कारण यह संभव है / ) पूजारीको भरपेट भोजन प्राप्त न हो और उसके कारण देवद्रव्यकी चोरी करनेके लिए मजबूर हो तो, बहेतर यह होगा कि घाटेवाला वेतन उसे देवद्रव्यमेंसे दिया जाय / . ऐसा करनेसे अन्यायी मार्गका अवलंबन करनमें निमित्तताका निवारण मानवताके अभावका निवारण, देवद्रव्यकी चोरीके दोषका निवारण आदि लाभ प्राप्त होते हैं / सुखी श्रावक लोग ऐसे समयमें विशिष्ट दान कर धनमूर्छा उतारनेका लाभ प्राप्त करें, यह उत्तमोत्तम बात है। लेकिन यह हो न सके तो तब कल्पित देवद्रव्यकी रकमका उपयोग, इस प्रकारसे देव(अरिहंत)के लिये किया जाय तो उसमें कोई हर्ज नहीं / प्रश्न : (68) धनका कहाँ ज्यादा उपयोग करनेसे अधिक लाभ प्राप्त होगा ? देरासरमें या जीवदयामें ? उत्तर : निश्चयनयमें कहा गया है कि, जहाँ तुम्हारे उल्लासमें बढावा होता हो, वहाँ धन उपयोग करनेसे अधिक लाभ प्राप्त होता है / व्यवहारनय कहता है कि जिस समय जहाँ विशेष आवश्यकता हो, जहाँ धनका उपयोग करनेसे लाभ प्राप्त होता है / सामान्य परिस्थितिमें देरासरमें धन लगानेसे अधिक लाभ होता है / उसका कारण यह है कि जीवदयामें दूसरे जीवों पर दयाभाव रखना धा.व.-७