________________ 96 धार्मिक-वहीवट विचार अवश्य कहा जा सकता है कि उन्होंने धनमूर्छा उतारी नहीं, जिससे उन्हें लाभ कम हो / धनमूर्छा उतारकर स्वद्रव्यसे पूजादि कार्य किये होते तो अधिक लाभ प्राप्त होता / 'द्रव्यसप्ततिका में ऐसा पाठ अवश्य है कि जो घरदेरासरका मालिक हो, उसे संघके बड़े देरासरमें पूजा करनी हो तो स्वद्रव्यसे ही करें / यदि उस घरदेरासरमें प्रभु समक्ष समर्पित नैवेद्य आदि-कि जो देवद्रव्य बन पाये हैं-उनसे संघमंदिरमें पूजा करें तो लोग तो यही समझेंगे कि- 'भाई कैसे उदार हैं ? ऐसे सुंदर नैवेद्यादि पदार्थोंसे पूजा करते हैं ?' ऐसे लोकचर्चा द्वारा उस घरदेरासरके मालिकको वृथा यशप्राप्तिका दोष लगनेकी संभावना है / अत: ऐसा यश प्राप्त न करनेके लिए उसे स्वद्रव्यसे ही बडे देरासरकी पूजा करनी चाहिए / यहां देवद्रव्यके नैवद्यादिसे उसने पूजाकी की तो भी उसे देवद्रव्यके उपभोगका दोष बताया नहीं, यह बात महत्त्वकी है / कई लोग, घरदेरासरविषयक इस पाठको सामान्य-सार्वत्रिक बताकर कहते हैं कि 'सब शक्तिसंपन्न लोग स्वद्रव्यसे ही पूजा करें / जिसके पास ऐसी शक्ति न हो, उसे पूजा नहीं करनी चाहिए / वे दूसरोंको सहायता करें / अर्थात् केसर घिसकर दें, मालागुंफन करें अथवा सामायिक . करें / यदि परद्रव्यसे या देवद्रव्यसे पूजा करें तो उसे दोषका भागी बनना पडता है / आश्चर्यकी बात यह है कि ऐसा जोरोंसे प्रतिपादन करनेवालोंने बम्बईके अपने संचालन-हस्तक दो देरासरोंमें 'जिनभक्ति साधारण' भंडार रखाये हैं / जिनमें डाले गये द्रव्यसे स्वगाँव एवं बाहरगाँवसे आये लोंगोको पूजाकी सारी सामग्रीकी सुविधा दी जाती है / ___क्या ऐसी पूजा, आगुन्तकोंके लिए परद्रव्यसे हुई पूजा मानी न जायेगी ? उपरान्त, हालमें प्रायः बडे देरासरोंमें देवद्रव्यका ही महत्तम भाग होता है / इस देवद्रव्यसे बननेवाले देरासरोंका, यह वर्ग कभी विरोध नहीं करता / देवद्रव्यसे बने देरासरका उपयोग श्रावक कैसे कर पाये ? उसका उत्तर वे लोग दें / परद्रव्यसे छ'रीपालित संघ द्वारा तीर्थयात्राएँ की जायँ, उससे यात्रिकोंको दोष लगेगा ? यदि हाँ, तो वे लोग ऐसे संघोंके प्रेरक क्यों बने ?