________________ धार्मिक-वहीवट विचार अब बात रही बैंकमें जमा करनेकी / मैंने अन्यत्र कहा ही है कि हमारी रकमें बैंकमें जमा न ही हों तो अच्छा है / प्रश्न : (63) संमेलनके देवद्रव्यके ठरावसे स्वद्रव्यसे जिनपूजा गौण बन पाती द्रष्टिगोचर हो रही है / उसका उपाय क्या है ? उत्तर :- यह शंका बिलकुल निराधार है / किसी पूर्वग्रहसे प्रेरित है / संमेलनने देवद्रव्यके शास्त्रोक्त तीन उपविभाग निर्दिष्ट किये हैं / उसमें तीसरे कल्पित देवद्रव्यके उपविभागके लिए कहा है, जिसे इस ठरावके विरोधियोंने 'जिनभक्ति साधारण' ऐसा नाम दिया है / उस जिनभक्ति साधारणमेंसे पूजाके लिए केसर आदि लाना, पूजारीको वेतन देना आदिकी जो व्यवस्था उन्होंने की है, वही व्यवस्था कल्पित-देवद्रव्यमेंसे करनेके लिए निर्देश दिया है / दोनों पक्ष ऐसी व्यवस्था उन स्थलोंमें करनेके लिए संमत हैं, जहाँ भावुकोंमें स्वद्रव्य खर्चनेकी हैसियत नहीं, अथवा शक्ति होने पर भी स्वद्रव्यका उपयोग करनेकी भावना नहीं / दोनों पक्षोंके आचार्य स्वद्रव्यसे जिनपूजादि गृहस्थ लोग करे, उसको प्राथमिकता देते हैं / वैसा ही निरूपण भी करते ... अन्तर केवल इतना ही है कि कल्पित देवद्रव्यखातेमें स्वप्नादिककी बोलीकी रकमोंको जमा करानेका निर्णय, संमेलनीय गीतार्थ आचार्योंने संमेलनमें घंटाँ तक की गयी चर्चाके फलस्वरूप लिया हुआ है / कतिपय आचार्योंने ही देवद्रव्यके तीन उपविभागोंकी बातोंको प्राधान्य दिया नहीं है केवल एक देवद्रव्य खाता रखा गया है / अतः वे स्वप्नादिकी बोलीकी रकमोंको देवद्रव्यमें जमा करनेके लिए कहते हैं / संमेलनीय आचार्यभी, देवद्रव्य खातेमें ही उन रकमोंको जमा करानेका निर्देश करते हैं / परन्तु, देवद्रव्यमें कल्पित देवद्रव्य खातेमें जमा लेनेका कहकर, उसी उपविभागमेंसे आवश्यकता पड़ने पर पूजारीको वेतन आदि देनेके लिए सूचित करते हैं / ___ इसमें संमेलन विरोधी आचार्योंके सामने एक समस्या यह है कि वे यदि देवद्रव्यका एक ही खाता रखनेको कहे तो पूजारीको वेतन आदि देनेकी परिस्थिति आये तब देवद्रव्य- सामान्यमेंसे (अर्थात् पूजा देवद्रव्य और निर्माल्य देवद्रव्यको रकममेंसे) भी पूजारीको वेतनादि देने में संमति देनी पडे, जो