________________ 93 चौदह क्षेत्रोंसे संबद्ध प्रश्नोत्तरी शास्त्रबाधित है। क्या वे लोग इसके पर बिचार करेंगे ? जब दोनों पक्षोमें इस मान्यताके विषयमें कोई तात्त्विक फर्क द्रष्टिगोचर नहीं होता तब संमेलनके ठरावके कारण स्वद्रव्यसे जिनपूजा बंद होनेकी शंका कैसे सही मानी जाय ? संमेलनके बाद कई स्थान पर परमात्माकी पूजा स्वद्रव्यसे अथवा साधारण द्रव्यसे करनेके लिए बडे बडे निधि एकत्रित किये गये हैं / संमेलनने भी शक्तिसंपन्न श्रावकोंको भावनासंपन्न बनकर स्वद्रव्यसे पूजा करनेके लिए आग्रह किया है, उपरान्त महात्मा भी तद्विषयक उपदेश देकर अनेक भव्यात्माओंको स्वद्रव्यसे पूजा कराते आये हैं / लेकिन अवसर-अनुसार कल्पित देवद्रव्यमेंसे पूजादि करनेकी व्यवस्था करनेके लिए संघको सूचित किया है / कल्पित देवद्रव्यमेंसे, उत्तम द्रव्योंसे की गयी पूजा-आंगी-महापूजा आदि देखकर भी अनेक श्रावकोंको ऐसी भक्ति स्वद्रव्यसे करनेका भाव पैदा होता है / अतः इस ढंगसे भी स्वद्रव्यसे भक्ति करनेकी भावनाको उत्तेजन मिलता उपरान्त, इसी ग्रंथमें इस विषयके बारेमें जो विचार पेश किये हैं, वे तो तत्तद् संयोगोंमें परद्रव्यसे और देवद्रव्यसे भी जिनपूजादि करनेकी बातका समर्थन करते हैं, संमेलन विरोधीयोंके आचरणमें भी ऐसे शुभलक्षण दीख पडे हैं / ____ प्रश्न :- (64) 'द्रव्यसप्ततिका' और 'श्राद्धविधि' ग्रंथके आधार पर कई ऐसा समर्थन करते हैं कि 'स्वद्रव्यसे ही पूजा करनी चाहिए' इस विषयमें स्पष्टता करनेके लिए कृपा करें / उत्तर :- 'श्राद्धविधि', 'द्रव्यसप्ततिका में स्वद्रव्येणैव पूजा कार्या आदि वाक्य (स्वद्रव्यसे पूजा करें)के पाठ घरमंदिरके द्रव्यकी व्यवस्थाके वर्णनमें 'आते हैं, परन्तु उन पाठों पर गौर किया जाय तो उन पाठों द्वारा तो देवद्रव्यमेंसे भी पूजा हो सके, ऐसा विधान मालूम होता है / इन पाठोंमें गृहचैत्यकी पूजाकी व्यवस्थाके लिए कहा गया है कि मालीको (पुष्पादिके लिए)मुख्यरूपसे मासिक वेतनके रूपमें गृहमंदिरके नैवेद्यादि दें नहीं, परन्तु अलगसे ही मासिक वेतन दें / लेकिन पहलेसे यदि नैवेद्यादि देनेके रूपमें मासिक वेतन निश्चित किया हो तो दोष नहीं / यहाँ प्रभुको समर्पित किया नैवेद्यादि देवंद्रव्य