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________________ चौदह क्षेत्रोंसे संबद्ध प्रश्रोत्तरी प्रश्न : (61) स्वप्नद्रव्य, उपधानकी माला आदि कल्पित देवद्रव्यकी रकमेंसे प्रत्येक संघ पूजारीको वेतन, गोठीको वेतन आदि कामकाज करे तो, जो आज अमुक देवद्रव्यमेंसे कतिपय संघोंके वेतन दिये जाते हैं, ऐसे भारी नकसान होनेसे न बचाया जाय ? उत्तर :- शक्तिशाली जिनभक्तोंको स्वद्रव्यसे पूजारीको वेतन आदि देना चाहिए, जिससे उन्हें धनमूर्छा उतारनेका बडा लाभ प्राप्त हो / / यह संभव न हो तो, पूजारीको ऐसी रकम किस खातेमेंसे दी जाय ? उसका जवाब संमेलनीय गीतार्थ आचार्योंने सर्वसंमतिसे निर्णयके रूपमें दिया है कि कल्पित देवद्रव्यमें यह रकम दी जाय / पूजा-देवद्रव्यादिकोंसे आप शुद्ध देवद्रव्य कहते हो, ऐसा मालूम होता है; लेकिन तीनों प्रकारका देवद्रव्य शुद्ध है / केवल वेतन देनेके रूपमें पूजा देवद्रव्यका उपयोग करना, राजमार्गसे उचित मालूम नहीं होता / प्रश्न : (62) कोई भाई प्रतिष्ठाके चढावेकी बोली बोलनेके बाद, उस रकमका उपयोग कहीं जीर्णोद्धारमें कर दे; लेकिन संघमें जमा न कराये, तो उसमें कोई हर्ज है ? उपरकी बातसे तो बैंकके पापसे बचा जाय और तुरंत रकमका सदुपयोग हो जाय, यह सबसे बड़ा लाभ नहीं ? उत्तर :- संपूर्णतया विरोध है / ___जिस संघके उपक्रमसे जो चढ़ावे बुलाये गये हों उसी संघमें ही उन चढावोंकी रकम जमा कराना यह न्यायकी बात है / यदि इस व्यवस्थाका भंग किया जाय तो जिस भाईने चढावेके रकम बोली होगी, उन्होंने अन्यत्र भी जमा की होगी या नहीं ? उसका पता ही न चलेगा / उस रकमके दाताकी इच्छा हो कि अमुक स्थान पर उस रकमका उपयोग किया जाय, तो उसे उस संघमें रकम जमा करानेके बाद, संघसे प्रार्थना करनी चाहिए कि उस रकमको निश्चित जगह भेजी जाय / एक बात सही है कि यदि संघका संचालन भ्रष्ट हो, अशास्त्रीय हो तो वह उस संघके नाम खुला जाहिरपत्र लिखकर, सकलसंघमें उस पत्रको प्रकाशित कर-प्रचार कर, स्वयं शास्त्रनीति अनुसार अपनी रकमका उपयोग, अन्यत्र कतिपय शिष्ट पुरुषोंकी उपस्थितिमें जल्द किया जाय और ऐसी संघको जानकारी देनी चाहिए /
SR No.004379
Book TitleDharmik Vahivat Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekharvijay
PublisherKamal Prakashan
Publication Year1996
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size22 MB
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