________________ 0 धार्मिक-वहीवट विचार वास्तवमें तो जैन गृहस्थोंको चाहिए कि वे जैन-बैंकों शुरु करनेका सोच-विचार करें / सांगलीमें 'पार्श्वनाथ बैंक' अधिक सफलताके साथ कार्यरत है / उसमें देवद्रव्यादिकी तमाम रकमोंको जमा करनेकी महाराष्ट्र सरकारने (सुरक्षाकी गारन्टी सरकार नहीं देती) संमति दे रखी है / अगर बैंकके नियामक अत्यन्त स्वच्छ-प्रमाणिक मनुष्य हों तो, बैंको घाटेमें जानेकी संभावना रहेती है / ऐसे जैनबैंक हिंसक कार्योमें रकमका उपयोग करेंगे ही नहीं, यह सीधीसादी बात है / प्रश्न :- (57) अखिल भारतीय स्तर पर जीर्णोद्धारका कार्य किया जाय तो सस्ता और व्यवस्थित हो नहीं सकता ? देवद्रव्यके कितने सारे रूपयोंका बचाव हो सकता है ? उत्तर : यह बात सही है / विचारणीय भी है / यदि आणंदजी. कल्याणजी पीढी जैसी संस्था निष्णात शिल्पियोंका मंडल गठित करे और उसकी देखभालके नीचे अखिलभारतीय स्तर पर जिनालयोंके जीर्णोद्धारकाकार्य हस्तगत किया जाय तो अवश्य वह सस्ता होगा और सुन्दर भी बनेगा / आजकल तो अच्छी-खासी रकमका शिल्प और पत्थर संबंधित जानकारीके अभावमें दुर्व्यय हो रहा है / कहीं कहीं तो खुलेआम लूंट जैसी हालत -~-खड़ी ह पायी है / जब्तक ऐसी द:खद परिस्थितिमें किसी परिवर्तनकी संभावना न हो तब तक ग्खिरबंदी देरासरजीके बजाय आर.सी.सी.के मकान स्वरूप देरासर बनवा कर व्यर्थका खर्च बचाना चाहिए / इससे देवद्रव्यका दुर्व्यय रूकेगा / इस्में गर्भगृह शिल्पके नियमानुसार संगमरमर या पत्थरका उपर शिखरके साथ बनाया जा सकता है / प्रश्न : (5) जिनप्रतिमाकी रकम जिर्णोद्धारमें खर्ची जाय तो उपरी खातेकी रक्मका उपयोग निम्न खातेमें करनेका दोष उत्पन्न नहीं होगा ? उत्तर :- सात क्षेत्रोंमें जिनप्रतिमा और जिनालय नामक प्राथमिक दो खाते हैं / उनके एकीकरणकी हालमें जो व्यवस्था द्रष्टिगोचर होती है / उसका रहस्य जाना आवश्यक है - जिनप्रतिमा और जिनालय, ये दोनों स्थल सद्व्यय करनेके उत्तम क्षेत्र हैं, न कि धन इकठ्ठा करनेके / जबकि देवद्रव्य एक ऐसा खाता है, जिसमें उपरोक्त दोनों क्षेत्रोंमें