________________ चौदह क्षेत्रोंसे संबद्ध प्रश्नोत्तरी विधि या हमारी विधिके अनुसार भी दर्शन पूजादि कर नहीं सकते / तिरुपति आदिके लिए भी यही बात समझ लें / प्रश्न :- (५६)केवल मोहवश देवद्रव्यके रूपये बैंकमें जमा कर रखे, तो वैसे ट्रस्टी कैसे दोषके साझेदार होंगे ? ट्रस्टीलोग कितने प्रतिशत रूपये अपने ट्रस्टमें रखकर बाकीकी रकम जीर्णोद्धारमें दे दें ? उत्तर : जिनमंदिरादिके ट्रस्टको अनिवार्य रूपमें सरकारमें रजिस्टर्ड कराने पंडते हैं, यह दुर्भाग्य की बात है / ऐसे रजिस्टर्ड टस्टोंकी रकम सरकारमान्य बैंकमें अथवा औद्योगिक पीढियों आदिमें सूद पर रखी जा सकती है / ___इन बैंको या औद्योगिक पीढियोंमें जमा हुई रकमका उपयोग प्रायः महारंभमें-महा हिंसामें ही किया जाता है / देवद्रव्यकी रकमको ऐसे स्थानोंमें जमा की ही न जाय / अतः सबसे अच्छी बात यही है कि जो भी रकम इकट्ठी हुई हो, उसका उपयोग देरासर आदि शास्त्रमान्य स्थलोंमें ही तुरंत कर दिया जाय / ____ तिथि आदिकी 'कायमी' योजनाएँ न बनाकर प्रतिवर्षके लिए हि केवल बनायी जाय / आखिरमें जहाँ जीर्णोद्धारादि कार्य चलते हैं वहाँ लोत रूपमें भी देवद्रव्यको रकम दे देनी चाहिए / प्रतिष्ठाके समय सामान्यतः भारी आमदनी होने पर वह लोन वापसी की जायेगी / पुनः अन्यत्र लोन / / अपने ही देरासर में आवश्यक हो तो उसमें उपयोग कर लें / जीवदयाकी रकम जितनी देरीसे उस विषयमें खर्च क जाय, उतना उन जीवोंको अभयदानादि देनेमें अंतराय होनेका भारी प ट्रस्टियोंको लगेगा / इसलिये इस रकमका भी जल्द उपयोग कर तना चाहिए / .. जिस रकमके सूद पर जो जो संचालन निभता हो-आधारित होउन संस्थाओंको ‘कॉर्पस' फंड एकत्र करना पडता है / इस कमको सरकारमान्य स्थान-संस्थामें ही जमा करनी पड़ती है, अतः हिंसाक महादोष उनके सर पर आरूढ होता है / इसमेंसे बचनेके लिए, उस संथाको, अपने उद्देशको अनुकूल बनकर जिस-तिस नगरमें मकान बनवाकर उसमें 'कार्यालय' शरू करना पडे / मकानका बाकी भाग बैंक आदिको किराये पर देकर, उसमेंसे प्राप्त बडे हप्ते और नियमित किरायोमेंसे अपना संचालन खर्च निकालना चाहिए / इससे दोषकी मात्रामें कमी आयेगी /