________________ 86 धार्मिक-वहीवट विचार समर्थन किया है / फिर भी ‘विवाद' उपस्थित किया गया है / उसमें भवितव्यत सिवा दोष किसे दिया जाय ? प्रश्न :- (54) कईलोग संघके देरासरमें जिनभक्ति साधारण (देवकुं साधारण )का भंडार रखवाते हैं और स्वद्रव्यसे ही पूजाका आग्रह रखते हैं, वह कितना उचित है ? 'जिनभक्ति-साधारण' और 'कल्पित देवद्रव्य का अन्तर समझाएँ / ... उत्तर :- बात सही है / एक ओर 'जिनभक्ति साधारण में जो रकम एकत्रित होती है, उससे जो लोग प्रभुपूजादि करते है, वह निश्चित रुपसे उनके लिए परद्रव्य है अथवा आगे बढकर ऐसा भी कह सकते हैं कि रकमका दान करनेवाला व्यक्ति, प्रभुपूजामें उस द्रव्यका उपयोग करनेके लिए संकल्पके साथ करता है / अतः वह रकम कल्पित देवद्रव्य ही बन जाती है / अब इस परद्रव्यसे या इस देवद्रव्यसे दूसरा व्यक्ति (बाहरगाँवसे आया अमीर या गरीब, शक्त या अशक्त) कैसे प्रभुपूजा कर पायेगा ? उसे स्वद्रव्यसे ही पूजा करनेका उस पक्षका आग्रह है / हमारे मतानुसार जिनभक्ति साधारण, देवकुं साधारण जिनपूजामें ही उपयुक्त किया जाय और कल्पित देवद्रव्य पूजा उपरान्त जीर्णोद्धार आदिमें भी उपयोगमें लाया जाय / प्रश्न :- (55) दिगंबर या सनातनी लागोंने जैन देरासर पर अधिकार कर लिया हो तो उस देरासरको वापस प्राप्त कर जीर्णोद्धारकी रकमसे उसका जीर्णोद्धार किया जा सकता है ? उत्तर :- अन्य तीर्थकोके अधिकारमें गया देरासर-प्रतिमाजी या तीर्थ, प्रयत्न करने पर पुनः प्राप्त होनेकी संभावना हो तो अवश्य प्रयत्न करें और वापस हाथ आने पर दुरस्ती आदि आवश्यक सब कुछ कर अठारह अभिषेकादि विधानों द्वारा शुद्ध कर पूर्ववत् उसकी पूजादि चालू कर दी जाय / प्रायः नागेश्वर तीर्थका भी हालमें इसी प्रकार पुनरुत्थान किया गया है / और हजारों यात्रीलोग उसकी यात्रा कर भक्तिलाभ प्राप्त कर रहे हैं / यदि मूर्ति या मंदिर पर अन्य लोंगोनें संपूर्णतया कब्जा कर लिया हो, उनकी ही विधि अनुसार पूजाकार्य करते हो और पुनःप्राप्त होनेकी संभावना दीखती न हो तो जब तक वह प्रतिमा, देरासर या तीर्थ वापस प्राप्त न हो, संघके अधिकार में न आ पाये तब तक उसके प्रति उपेक्षा दिखायें / हम वहाँ जाकर उनकी