________________ धार्मिक-वहीवट विचार ज्यादा प्रोज्वल हो उठता है / उपरान्त, आभूषणोंके कारण बालजीवोंके लिए प्रभु अधिक आकर्षक लगते हैं / जिससे उनके प्रति अधिक आकर्षण पैदा होनेसे तन्मयता सिद्ध होती है / प्रश्न : (52) जिनप्रतिमा भरानेका और जिनप्रतिमाकी प्रतिष्ठा उन दोनोंमें क्या फर्क है ? प्रतिमाके पर किसका नाम आये ? भरानेवालेका या प्रतिष्ठा करानेवालेका ? उत्तर : जिनप्रतिमा भराना अर्थात् पत्थरमेंसे प्रतिमा बनाना, यह काम शिल्पीका है / इस प्रतिमाको बनानेका लाभ लेनेके लिए उछामनी बोली जाती है / जो पुण्यात्मा लाभ प्राप्त करे, वह अपने नामका मोह न रखे, यह योग्य और उत्तम है / फिर भी, लोकव्यवहारसे उसका नाम उस मूर्तिके नीचेकी पट्टीमें सामान्यतया लिखा जाता है / इस रकमका उपयोग वास्तवमें तो नयी मूर्तियोंके निर्माणमें ही किया जाय; परन्तु लाखों रुपियोंकी उछामनियां द्वारा कितनी मूर्तियाँ बनवायी जायँ? उपरान्त, पुनः उन मूर्तियोंकी भी उछामनियाँ तो होती ही रहेंगी / इस निमित्त अथवा अन्य निमित्त अब इस रकमका उपयोग आवश्यक सामग्री खरीदने में, पूजारीको वेतन देने आदिकामोंमें किया जाता है / इस रकमको जिसे कल्पित-देवद्रव्य कहा जाता है उस खातेमें जमा की जाय / जो प्रतिमा बनायी जाय, उसकी अंजनशलाकाविधि विशिष्ट संयमधारी पदस्थ भगवंतोकी पास करायी जाय / उस विधिके पूरे होते ही प्रतिमा 'भगवान' स्वरूप धारण करती है / शिल्पी मूर्ति बनाता है / महात्मा उसे भगवान बनाते हैं / इस प्रकार 'भगवान' स्वरूप बनी प्रतिमाको देरासरमें निश्चित स्थान पर जिस वेदिका पर प्रतिष्ठापित की जाय उसे प्रतिष्ठा कही जाती है / पाषाणकी प्रतिमाकी प्रतिष्ठामें सीमेन्टसे उस स्थान पर उसे जमा कराती है / बादमें उसे हटायी नहीं जाती, अतः उसे स्थिर प्रतिष्ठा कही जाती है / (संयोगवश अतिथि भगवानके रूपमें भी सिमेन्टके द्वारा स्थिर किये जा सकते हैं / ) जब कि घरदेरासरोंमें 11 ईन्च पर्यन्त प्रमाणकी पंचधातु आदिकी मूर्ति ही प्रतिष्ठित की जाती है / जिसे स्थिर नहीं बना दी जाती / उसे 'चलप्रतिष्ठा' कही जाती है / गृहस्थको घर बंदकर थोडे दिनोंके