________________ चौदह क्षेत्रोंसे संबद्ध प्रश्नोत्तरी प्रश्न :- (48) द्वारोद्घाटनका घी किस खातेमें जमा किया जाय ? उत्तर :- देवद्रव्य खाते....कल्पित देवद्रव्य खातेमें, पूजा देवद्रव्य खातेमें नहीं / प्रश्न :- (49) देरासरमें गलतीसे दवा या खानेकी चीज ले जायी गयी हो तो क्या किया जाय ? उत्तर :- यदि वह चीज किंमती न हो, तो उसका रेत आदिमें विसर्जन कर देना चाहिए, लेकिन भारी किंमतकी अभ्रक-भस्मादि हो तो, उसे दूकानदारको वापस कर बदलेमें दूसरी चीज ली जाय / वास्तवमें तो देवको समर्पित करनेका दृढ संकल्प (निश्चयबुद्धि) हो तभी वह द्रव्य देवद्रव्य बन पाता है / गलतीसे जिनमंदिरमें ली जा गयी वस्तु देवद्रव्य बन नहीं पाती / परन्तु व्यवहारशुद्धिके लिए उसका उपयोग करना उचित नहीं माना जाता / प्रश्न :- (50) देरासर में घड़ी रखना उचित है ? उत्तर :- सचमुच तो प्रभुभक्तिमें समयको देखना योग्य नहीं; परन्तु ऐसा करनेसे दुकान पर या नौकरी पर पहुँचने में देरी हो और उसके कारण उपालम्भ मिले, स्वयंको आर्तध्यान हो तो कभी जिनपूजा बंद कर देनेकी इच्छा हो / ऐसा न हो उसके लिए समय देखनेकी व्यवस्था की जाय तो उसमें कोई हानि नहीं / __- प्रश्न :- (51) परमात्माको किंमती आभूषणोंकी क्या जरूरत है ? इस विषयमें दिगंबर मान्यता उचित नहीं लगती ? उत्तर :- परमात्मा वीतराग हैं, लेकिन गृहस्थलोग तो रागयुक्त हैं न ? उनकी आभूषणोंके प्रति रागदशा दूर करनेके लिए वीतरागकी प्रतिमा पर आभूषण लगाए जाते हैं / यदि अपने प्रियपात्रको (पत्नीको) आभूषण पहनायें जायँ तो उपरसे रागदशामें बढ़ावा होगा / इसी लिए तो वीतरागको ही आभूषण पहनाये जायँ / वीतराग यानी वीतराग / आभूषण पहननेसे वे रागयुक्त नहीं बनेगें / अलबत्त उतने प्रमाणमें गृहस्थलोग रागमुक्त होंगे / वीतराग परमात्माका समवसरण, देशनाका सिंहासन, पाँव धरनेके कमल आदि कितने मूल्यवान हैं ? उससे वे रागयुक्त नहीं बन पाते / उसके विरद्ध उतनी संपत्तिके बीच भी उदासीन मुखमुद्रा द्वारा उनका वीतरागभाव