________________ 80 धार्मिक-वहीवट विचार कल्पित देवद्रव्यकी रकमका उपयोग करें / ऐसा करनेसे साधारण खातेके लिए उपाश्रय, आयंबिल खाता आदिका ही भार संघको रहेगा / इस प्रकार देरासरके बडे खर्चकी चिंता दूर होने पर संघोंका बोझ कम होगा और उपाश्रय आदिका खर्च, साधारण खातेकी रकमसे आसानीसे किया जा सकेगा / पूज्यपाद पं. भद्रंकरविजयजी गणिवर श्रीने सूचित किया है कि (परिशिष्टमें उनका पत्र देखें) 'जहाँ पूजाके साधारणमें घाटा है और नया पैदा हो सके ऐसी हालत नहीं, वहाँ देवद्रव्य द्वारा उस घाटेकी पूर्ति की जाय, उसमें भी कोई बाधा नहीं और वैसा करना यह वर्तमान राजनीतिक परिस्थितिमें समयोचित भी माना जाय / ' देरासरमें पूजा आदिका सारा खर्च, साधारणमेंसे ही करनेके आग्रही बड़े संघोंके पर साधारण खर्चका भारी जवाबदारी आ जाती है / जिसकी पूर्ति न होने पर, देवदेवियोंकी, घंटाकर्णकी प्रतिमाओंकी स्थापना साधारण खातेकी आमदानीके लिए करते हैं / इससे देवाधिदेवका महत्त्व कम होता है और देवदेवियोंका महत्त्व बढ़ता है / इस प्रकार प्रभुजीकी आशातनामें निमित्तरूप होते हैं / अतः साधारण खातेकी समस्याके उपायके लिए उपर निर्दिष्ट शास्त्रानुसारी उपाय ही आवश्यक है / ' प्रश्न : (41) स्नात्रपूजाका श्रीफल रोज एक ही एक समर्पित किया जाय और उसके मूल्यके रूपमें पाँच रूपये देवद्रव्यके भंडारमें प्रतिदिन डाले जाय तो, कोई हर्ज है ? उत्तर :- धर्म केवल बाह्य क्रियात्मक नहीं है, वह भावात्मक भी है / प्रतिदिन नया फल समर्पित किया जाय, उससे उत्पन्न भावोल्लासको पाँच रूपयेके नोट डालकर महसूस करना, यह उचित नहीं / श्रीफल तो निर्माल्य चीज है / उसे बार बार एक ही कैसे समर्पित किया जाय ? अलबत्त, दूसरे अधिक श्रीफलोंकी उपलब्धि होती न हो तो ऐसे स्थल पर चाँदीका श्रीफल बनाया जाय, (जो निर्माल्य नहीं बन पाता) उसे रोज समर्पित किया जाय / उसके निमित्त पाँच रूपये भंडारमें डाल सकते प्रश्न :- (42) देरासरमें काँचकाम, भंडार, सिंहासन, दीवारोंमें चित्रपट आदिका खर्च देवद्रव्यमेंसे किया जा सकता है ? उत्तर :- अवश्य, उसमें कोई बाधा नहीं / चित्रपटों आदिके लिए दान ग्रहण कर, दाताकी तख्ती योजना की जाय तो देवद्रव्यमेंसे उतनी रकमका