________________ कहा गया है। जीवन का सार्थक समापन करनेवाली इस सल्लेखना-विधि का नाम है मृत्यु-महोत्सव। इसी को अगर पद्य में कहें तो“आज न्यौता सखे मान लो मौत का, जिन्दगी को बहुत प्यार हम कर चुके. गिर चले आज बन्धन सभी टूट कर, अब किसी की निगाहें नहीं रोकतीं अब किसी के पियासे नयन की हमें, आज अतृप्त चाहें नहीं रोकतीं तो सखे आज बन्धन सभी तोड़ लें, सिसकियाँ और आहे नहीं रोकती और ममता भरी नेह की एक पल, आज उन्मुक्त बांहें नहीं रोकतीं जिन्दगी भर हमें जिन्दगी ने छला, जिन्दगी को बहुत प्यार हम कर चुके आज न्यौता सखे मान लो मौत का, जिन्दगी को बहुत प्यार हम कर चुके जिन्दगी राह भर डगमगाती रही, हर कदम पर हमी ने सहारे दिए आज दीपावली की तरह मौत ने, पथ प्रकाशित किया है हमारे लिए जिन्दगी की तरह जिन्दगी एक दिन भी, हमें रूप अपना दिखाती नहीं मौत से भी भयानक हुई जा रही, जिन्दगी क्योंकि चूँघट उठाती नहीं मुस्कुराती हुई मौत पर रीझ कर, बेबसी में नयन ,चार हम कर चुके आज न्यौता सखे मान लो मौत का, जिन्दगी को बहुत प्यार हम कर चुके फूल जब डाल से टूटने को हुआ, मीत भौंरे कहीं मुँह छिपाने लगे, एक काँटा मगर चीख कर कह उठा, क्या यही प्यार था आज जाने लगे? मुस्कुरा कर कहा फूल ने शूल से, राह मेरी सखे ! रोकना व्यर्थ है जब किसी की नजर आज पड़ ही गई, रुक सकूँगा नहीं, टोकना व्यर्थ है जो रुके, एक दिन सूख कर झर गये, खूब अनुभवं कई बार हम कर चुके, आज न्यौता सखे मान लो मौत का, जिन्दगी को बहुत प्यार हम कर चुके जिन्दगी एक मेला बनी, जो मिला, एक दिन नाम उसका भुलाना पड़ा बुलबुले की तरह जन्म जिसने लिया, एक दिन चल बहुत दूर जाना पड़ा आज तक दर्द की वेदना भूलकर, गीत लिखता रहा, गुनगनाता रहा जिन्दगी के तराने बड़े प्यार से, जिन्दगी भर तुम्हें मैं सुनाता रहा आज तुम गीत गाओ विदा का सखे, राह थोड़ी रही, पार हम कर चुके आज न्यौता सखे मान लो मौत का, जिन्दगी को बहुत प्यार हम कर चुके” 7000 प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004