________________ ज्ञान के आधार पर होता है। ज्ञानी पुरुष जब उस स्थिति की अनिवार्यता का ज्ञान कर अपने उपयोग को वहाँ से हटाकर बलात् उसे अपने स्वरूप-दर्शन में लगाता. है तो कष्टों का भी अनुभव नहीं होता और उज्ज्वल परिणामों से मरण कर उत्तम गति पाता है। जो मरण-समय परिणामों में संक्लेश परिजनों से मोह, भोग-विषयों की वांछा, आगामी काल में वांछा रूप निदान करते हैं उनकी सुगति नहीं होती, दुर्गति ही होती है। यदि सम्यग्दृष्टि जीव भी मरण काल में कष्टों से घबराकर सम्यक्त्व की विराधना करे, तो दुर्गति ही होती है। यदि सम्यक्त्व दशा में देवायु भी बाँध ली हो तो मिथ्यात्व का उदय आ जाने पर वह घातायुष्क होकर अपनी आयु का प्रमाण छीनकर के स्वर्गों में न जाकर भवनत्रिक में उत्पन्न होता है, उनसे भी हीन स्थिति वाला देव होता है। यदि कदाचित् मुनि अवस्था का धारी भी अन्त समय साधना पथ से भ्रष्ट होता है और वह पूर्वबद्ध आयु कर्म के कारण स्वर्गों में भी उत्पन्न हो तो उत्तमदेव न होकर वह आभियोग्य जाति में उत्पन्न होकर उत्तम देवों का वाहन (हाथी) आदि बनकर जीवन भर उनको ढोने का कार्य करता है। किल्विषिक जाति में उत्पन्न होकर दुरदुराया जाकर अपमान ही पाता है। जो साधु भोजनादि में गृद्धता करता है- यन्त्र-मन्त्र-तन्त्र में उपयुक्त होता है, हास्यादि कर्म में समय व्यतीत करता है वह भी आभियोग्य जाति के देवों में उत्पन्न होकर हाथी, घोड़ा, मेष, भैंसा आदि रूप धारण कर उत्तम देवों की सेवा ही करता है। देव पर्याय पाकर भी पशु जीवन व्यतीत करता है। इसे ही देव गति में देव दुर्गति कहते हैं। ___ यह सल्लेखना जीवन की साधना का फल है। यदि जीवन भर व्रताचार किया और अन्त समय उसकी विराधना हो गई तो यह ऐसा कार्य हुआ जैसे कोई समुद्र तिर कर आवे और किनारे आकर डूब जाय / साधक कभी भी अपनी साधना को विफलीभूत नहीं होने देता। जिन्होंने जीवन में साधना नहीं की, केवल भोगों में ही जीवन बिताया है, वे भी यदि अंतिम क्षणों में, जबकि शरीर भोगोपभोग के साधनों के उपभोग-योग्य नहीं रह जाता तब भी यदि आत्मसाधना के मार्ग को अपना लेवें तो उनका भी जीवन सफल हो जाता है। जीवन की साधना का भी फल अन्तिम सल्लेखना मानव-जन्म को सफल बनाती है। शास्त्रकारों ने स्पष्ट लिखा है कि जिसकी अन्तिम समाधि एक बार भी किसी पर्याय में हो गई तो वह साधक भी क्यों न हो, सात-आठ भव से अधिक संसार-परिभ्रमण नहीं करता। 62 00 प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004