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________________ माँ के संस्कार पंचनमस्कारप्रभृतिमन्त्रप्रतिमादिबहिर्द्रव्यालंबनेन चित्तस्थिरीकरणं धारणा।' -आचार्य जयसेन, समयसार टीका, गाथा 326 भावार्थ :- पंचनमस्कारमन्त्रादि तथा प्रतिमा आदि बाह्य द्रव्यों के आलम्बन से चित्त को स्थिर करना धारणा है। वस्तुतः धारणा ध्यान की पूर्व भूमिका है। संस्कार के उत्पन्न करनेवाले ज्ञान को ही धारणा कहते हैं। जन्म के 49 दिन पश्चात् बच्चे को तिलक लगाकर णमोकार मन्त्र कान में सुना कर सुसंस्कारित करने की परम्परा है। बड़ा होने पर माँ/दादीमाँ बच्चे को सर्वप्रथम णमोकार मन्त्र ही सिखाती है। *A good mother is better than hundred teachers' एक सुशिक्षित, सभ्य, सदाचारिणी एवं धर्मपरायण माता अपनी सन्तान को जैसा सुसंस्कारसम्पन्न, धीर, वीर तथा चारित्र-मणि बना सकती है, वैसा सौ अध्यापक भी नहीं कर सकते; अतः माता . ही बालक के लिए प्रथम आदर्श शिक्षिका है, बालक का अधिक समय जननी के पास ही व्यतीत होता है। अतः देश, धर्म और जाति के अभ्युत्थान के लिए उन्हें सर्वांगीणं-उदात्त-सम्पदाओं से विभूषित करना और धर्म के प्रति अटूट आस्थावान् बनाना माताओं पर ही निर्भर करता है। . केवल बालक को जन्म देने मात्र से कोई 'माँ' नहीं कहला सकती / आचार्यश्री कुन्दकुन्द, आचार्यश्री समन्तभद्र, श्री अकलंकदेव, समाधिसम्राट् प्रथमाचार्य श्री शान्तिसागर एवं श्री गणेशप्रसाद जी वर्णी जैसे लोकवन्दित पूज्यजन अद्वितीय महात्मा बन सके - यह सब माँ के संस्कारों का ही सुफल है। इस संक्रमण काल में माताएँ अपने इस आद्य कर्त्तव्य के प्रति जागरूक रहें - यह अत्यन्त आवश्यक पवित्र कर्त्तव्य है। —आचार्य विद्यानन्द मुनि 200 प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004
SR No.004377
Book TitlePrakrit Vidya Samadhi Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Bharti Trust
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2004
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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