________________ के प्रसिद्ध हाथी गुफा वाले शिलालेख (ई.पू. द्वितीय शताब्दी) में स्पष्ट उल्लेख है कि सम्राट् खारवेल ने अपने शासन के तेरहवें वर्ष में व्रत पूरा होने पर उन यापज्ञापकों को, जो कुमारी पर्वत पर, समाधियों पर याप और क्षेम की क्रियाओं में प्रवृत्त थे, जहाँ राजभृतियों को वितरण किया। (पंक्ति 14) इससे सल्लेखना समाधि का प्राचीन रूप स्पष्ट होता है। भगवती आराधना ग्रन्थ में भी यापज्ञापकों का उल्लेख मिलता है। अनेक ऋषियों और आर्यिकाओं की सल्लेखना * श्रवणवेल्गोल के चन्द्रगिरि पर्वत पर सल्लेखना विषयक सर्व प्राचीन और सर्वाधिक शिलालेख हैं, जिसमें अधिकांश 7वी-8वीं शताब्दी अथवा इसके पूर्व के हैं। उपरान्त काल में सल्लेखना का उतना अधिक प्रचार प्रतीत नहीं होता। उनमें बड़े-बड़े आचार्य, मुनि, आर्यिका और श्रावक-श्राविका भी थे। श्रावकों में बड़े-बड़े राजा-महाराजा से लेकर साधारण किसान भी सल्लेखना करते थे। श्राविक़ायें भी पुरुषों से पीछे न थीं। इनके कतिपय उदाहरण देखिये। ___ आचार्यों और मुनियों में सर्वश्री शुभचन्द्र, मेघचन्द्र, प्रभाचन्द्र, मल्लिषेण, पण्डितार्य व श्रुत मुनि की प्रशस्तियाँ पठनीय हैं; जिनमें उन आचार्यों की कीर्ति सहित स्वर्गवास का वर्णन है। लेख नं. 159 (22) में लिखा है कि क़रलत्तूर के एक मुनि ने कटवा पर्वत पर 108 वर्ष तक तपश्चरण करके समाधिमरण किया था। इस पर्वत के कतिपय शिलालेखों के भाव भी पठनीय हैं :* कालाविर गुरु के शिष्य ने 21 दिन तक संन्यास व्रत पाल कर प्राणोत्सर्ग किया। . -(13-33, सं. 662) रूप, लीला, धन व वैभव, इन्द्रधनुष, बिजली व ओसबिन्दु के समान क्षणिक हैं- ऐसा विचार कर नन्दिसेन मुनि ने संन्यास धार कर सुरलोक को प्रस्थान किया। ___ -(26-88 संवत् 622) मृत्यु का समय निकट जान गुणवान् और शीलवान् देवसेन महामुनिव्रत पाल स्वर्गगामी हुए। -(32-113, सं. 622) * अब मेरे लिए जीवन असम्भव है -ऐसा कहकर कोलतूर संघ के ... ... ने समाधि व्रत लिया। ___-(33-93, सं.622) . व्रत-शील आदि सम्पन्न शशिभति गन्ति कल्वप्प पर्वत पर आई और यह कहकर कि मुझे इसी मार्ग का अनुसरण करना है, तीर्थगिरि पर संन्यास धारण कर स्वर्गगामी हुई। राजा-महाराजाओं की सल्लेखना ___राजा-महाराजाओं में राष्ट्रकूट वंश के सम्राट् इन्द्र चतुर्थ और गंगवंश के सम्राट 12800 प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004