________________ इस प्रसंग में सल्लेखना के ऐतिहासिक इतिवृत्त पर विहंगम दृष्टिपात कर लेना उपादेय है। पुराणों की बात हम न कहेंगे, हम तो इतिहास के चमकते हुए उदाहरणों को ही उपस्थित करेंगे। भद्रबाह स्वामी और सम्राट चन्द्रगुप्त ___ अन्तिम श्रुतकेवली श्री भद्रबाहु जैन संघ में सुप्रख्यात हुए। उनके शिष्य मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त थे। चन्द्रगुप्त उनके साथ दक्षिण भारत को गये थे और कटवप्र पर्वत पर उन्होंने सल्लेखना व्रत पालन किया था। श्रवणबेलगोल के शिलालेख में लिखा है- ... ... भद्र बाहु स्वामिना ... ... सर्वस्संघ उत्तरापथाद्दक्षिणापथम्प्र स्थितः ... अतः आचार्य प्रभाचन्द्रो नामावनितल-ललाम-भूतेऽथास्मिन् कटवप्र नामकोपलक्षिते .. ...... समुत्तुंग-शृंगे शिखरिणि जीवितशेषमल्पहर-कालमवबुध्यात्मनः सुचरिततपस्समाधिमाराधयि- तुमापुच्छ्य निरवशेषेण संघ विसृज्य शिष्यणैकेन पृथुलतरास्तीर्णतलासु शिलासु शीतलासु स्वदेहं संन्यस्याराधितवान् क्रमेण सप्तशतमृषीणामारधितमिति जयतु जिन-शासनमिति। .. -(शिलालेख नं. 182, शक सम्वत् 522) ___ भाव यह है कि भद्रबाहु स्वामी सर्व संघसहित उत्तरापथ से दक्षिणायण चले आये। उनके साथ प्रभाचन्द्र (चन्द्रगुप्त) भी आये और कटवप्र पर्वत पर ठहरे। भद्रबाहुस्वामी ने अपनी अल्पायु जानकर सारे संघ को आगे भेज दिया और स्वयं वहाँ रहकर समाधिमरण किया। उनके पश्चात् क्रमशः सात सौ ऋषियों ने समाधिमरण किया था। सम्राट् चन्द्रगुप्त गुरु के समाधिस्थल पर रहकर तप तपते रहे और अन्त में उन्होंने भी वहीं समाधिमरण किया। शान्तिसेन एवं अन्य ऋषिगण ___ स्वामी भद्रबाहु और चन्द्रगुप्त मुनि द्वारा जैनधर्म की महती प्रभावना हुई थी। उनके पश्चात् वह किंचित् क्षीण हुआ तो शान्तिसेन मुनि ने उसे पुनरुत्थापित किया। इन मुनियों ने बेलगोल पर्वत पर अशन आदि का त्याग कर पुनर्जन्म को जीत लिया- सल्लेखना की यह महत्त्वपूर्ण वार्ता श्रवणबेलगोल के शिलालेख नं. 17-18 (31) शक सम्वत् 572 में इन शब्दों में अंकित है : “श्री भद्रबाहु स चन्द्रगुप्त मुनीन्द्र युग्मदिनोप्पेवल / भद्रमागिद् धर्ममन्दु बलिक्केवन्दिर्निसल्फली।। विदुमाधर शान्तिसेन मुनीश नाक्किए बेल्गोल। अदिमेलशनादि विट्टपुनर्भवक्केरे आगि... ... ||" सम्राट ऐल खारवेल के समय में समाधि-सल्लेखना जैनसंघ की इतनी विशिष्ट क्रिया थी कि उसकी ठीकठीक आराधना के लिए यापज्ञापक लोग नियुक्त रहते थे। कलिंग सम्राट् खारवेल प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004 00 127