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________________ 84 . . मृत्यु की दस्तक पौरुषापौरुषेय हैं। गीता की स्थिति इन दोनों प्रस्थानों से भिन्न है। गीता स्वयं भगवान् की . . रचना मानी जाती है। कहा जाता है - ___ गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः / या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपदमाद्विनिःश्रिता।।। गीताकार योगीराज कृष्ण हैं। लोक में यह मान्यता प्रचलित है कि कृष्ण स्वयं भगवान् हैं (कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्)। ऐसी स्थिति में प्रस्थानत्रयी में गीता का स्थान सर्वोच्च माना जाना चाहिए। गीता के बाद उपनिषद् का स्थान आता है क्योंकि इसकी रचना ऋषियों के माध्यम से हुई है। उपनिषद् आर्ष रचना है। ऋषियों ने अंतर्दृष्टि से मन्त्रों का दर्शन किया। ब्रह्मसूत्र का स्थान प्रस्थानत्रयी में सबसे नीचे है, क्योंकि इसकी रचना बुद्धि एवं तर्क-शक्ति के आधार पर की गयी है। गीता एक भाष्य अनेक; ऐसा क्यों? गीता एक है, पर इसके भाष्य अनेक हैं क्योंकि गीता एक अति ही दुरूह ग्रन्थ है। इसी दुरूहता के कारण व्याख्याकार एक श्लोक के अनेक अर्थ निकालते हैं। जहाँ गीता में आचार्य : शंकर निर्विशेषाद्वैत की झलक पाते हैं, वहीं रामानुजाचार्य, निम्बार्काचार्य, वल्लभाचार्य एवं मध्वाचार्य को इससे क्रमशः विशिष्टाद्वैत, द्वैताद्वैत, शुद्धाद्वैत एवं द्वैत का प्रकाश मिलता है। गीता की दुरूहता के विषय में यहाँ दो प्रमाण प्रस्तुत हैं। पहला, गीता का प्रथम श्रोता अर्जुन है। द्वितीय अध्याय में योगीराज कृष्ण द्वारा कही गयी बातें अर्जुन की समझ में नहीं आतीं। भगवान् की ऊँची-ऊँची बातें सुनते-सुनते उसकी बुद्धि सम्भ्रम. में पड़ जाती है। गीता का तीसरा अध्याय अर्जुन के ही वक्तव्य से प्रारम्भ होता है। वह बोलता है, “भगवन्, जब आपके मतानुसार कर्म की तुलना में बुद्धि अथवा ज्ञान श्रेष्ठ है तो फिर आप मुझे कर्म में क्यों झोंक रहे हैं? आप अपनी अस्पष्ट एवं परस्पर विरोधी बातों से मेरी बुद्धि में व्यामोह पैदा कर रहे हैं। दो-टूक शब्दों में बोलिए, मुझे क्या करना है।" अर्जुन की इस बात से स्पष्ट है कि गीता में भगवान् ने जो कुछ कहा है उसमें दुरूहता अवश्य है। दूसरा, आचार्य शंकर ने प्रस्थानत्रयी पर भाष्य लिखा है। उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र जैसे जटिल ग्रन्थ उन्हें दुरूह नहीं लगे परन्तु जब वे गीता पर भाष्य लिखने लगे तो उन्हें यह ग्रन्थ जटिल लगा। गीता भाष्य के उपोद्घात में वे लिखते हैं “तदिदं गीताशास्त्रं समस्त वेदार्थसार संग्रहभूतं दुर्विज्ञेयार्थम्. . . अतः तद्विवरणे यत्नः क्रियते मया।" अर्थात् यह गीता शास्त्र सभी वेदों का सार है लेकिन दुरूह भी है। इसलिए मैं इसका अर्थ बताने का प्रयास कर रहा हूँ। गीता में प्रकृति, पुरुष एवं मृत्यु गीता स्वयं उपनिषद् है, ब्रह्मविद्या है, योगशास्त्र है। प्रस्थानत्रयी में वह स्मार्त प्रस्थान है। इसमें जो कुछ कहा गया है, वह भारतीय चिन्तन का नवनीत है, निचोड़ है। गीता के विवेच्य विषय अनेक हैं। इनमें से मृत्यु एक है। इस ग्रन्थ में जहाँ कहीं भी आत्मतत्त्व का विवेचन
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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