________________ 60 . मृत्यु की दस्तक जिन्दगी महबूब ऐसी दीद-ए-कुदरत में है,। जौक़-ए-हिफ्ज़-ए-जिन्दगी हर चीज़ की फितरत में है।। मौत के हाथों से मिट सकता है अगर नक्शा-ए-हयात। आम यूं इसको न कर देना नेजाम-ए-काएनात।। है अगर अरजां तो यह समझों अजल कुछ भी नहीं। जिस तरह सोने से जीने में खलल कुछ भी नहीं।। मौत तजदीद-ए-मजाक-ए-जिन्दगी का नाम है। ख़्वाब के परदे में बेदारी का एक पैगाम है।। जो हर इन्सां अदम से आशना होता नहीं। आंख से गायब तो होता है फना होता नहीं।। यह अगर आईन-ए-हस्ती है कि हो हर शाम सुबह। मरकद-ए-इनसां की शव का क्यों न हो अन्जाम सुबह / / मुखतलिफ हर मंजिल-ए-हस्ती की रस्म व राह है। आखिरत भी जिन्दगी की एक जौलां गाह है।। उपरोक्त पंक्तियों में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि मृत्यु के पश्चात् जीवन तथा मनुष्य पूर्णरूपेण समाप्त नहीं हो जाता, उसका अस्तित्व शेष रहता है, हां उसके सम्मुख एक नया जीवन एवं नया संसार होता है। हम जब सोते हैं तो हमारी व्यस्तता समाप्त हो जाती है पुनः जब हम जागते हैं तो स्थिति पूर्ववत् होती है। इसी प्रकार मृत्यु के पश्चात् नवजीवन में पूर्व जीवन के प्रतिफल का क्रम आरम्भ होता है। लेख के समापन पर हम अपना विश्वास प्रकट करना चाहते हैं कि मृत्यु की वास्तविकता पर यदि मनुष्य उचित ध्यान दे और उसके पश्चात् आने वाले जीवन के कल्याण का मार्ग ढूंढे तो वर्तमान युग की बहुत सी भयानक समस्याएं समाप्त हो जाएंगी तथा एक शान्तिमय एवं मंगलमय वातावरण स्वयं बन जाएगा क्योंकि मनुष्य मृत्यु को भूल जाता है तब ही कुकर्म करता है। यदि उसे मृत्यु की वास्तविकता पर दृढ़ विश्वास हो जाए और यह भी विश्वास करे कि उसके प्रत्येक कार्य का प्रतिफल उसे मिलेगा तो निश्चय ही कुकर्म के लिए वह नहीं बढ़ेगा अपितु सुकर्म करेगा। है।