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________________ मृत्यु-महोत्सव जैन धर्म के परिप्रेक्ष्य में ' - मुन्नी पुष्पा जैन शीर्षक पढ़ते ही लोग आश्चर्य में पड़ जायेंगे कि अभी तक गर्भोत्सव, जन्मोत्सव, विवाहोत्सव, राष्ट्रीय उत्सव, सामाजिक उत्सव, धार्मिक उत्सव, इत्यादि उत्सवों के बारे में तो बहुत सुना . और मनाये भी, शामिल भी हुए परन्तु मृत्यु का भी कोई उत्सव हो सकता है? उत्सव ही नहीं महोत्सव अर्थात् उपर्युक्त सभी उत्सवों से उत्कृष्ट विशेष खुशी का दिन जिसके आने के इंतजार में उसकी विशेष तैयारियां की जाती हैं। लोग मृत्यु को दुःख या उदासीनता का पर्याय मानते हैं, यह जगत् का व्यवहार है। जैन शासन में “मृत्यु" की विशेष परिभाषा है। मृत्यु अटल सत्य है, किसी के रोके नहीं रुकी है। सभी संसारी प्राणी इससे परिचित हैं, परन्तु फिर भी "भय” करते हैं। जैन धर्म इस अटल सत्य का स्वागत करने की विधि सिखाता है, जिसे सल्लेखना, समाधिमरण, संथारा, मृत्यु-महोत्सव, आदि नामों से जाना जाता है। संसार का प्रत्येक व्यक्ति मुख्यतः क्रोध, मान, माया और लोभ इन चार कषायों में लिप्त रहता है। “कषाय” अर्थात् जो आत्मा को कसे या दुःख दे। सल्लेखना का व्युत्पत्तिमूलक अर्थ है सत् अर्थात् सम्यक प्रकार से लेखना - कषायों को कम करना, क्षीण करना। जैन ग्रन्थ तत्त्वार्थ सूत्र (7-22) में कहा है - “मरणान्तिकी सल्लेखना जोषिता" अर्थात् मरणकाल उपस्थित होने पर ग्रहस्थ को प्रीतिपूर्वक सल्लेखना करना चाहिए। शरीर त्याग के तीन भेद आचार्य नेमिचन्द ने गिनाये हैं - 1. च्यावित - विषम क्षण, रक्तक्षय, शस्त्रघात, अग्निदाह, जल प्रवेश “गिरिपतन” आदि निमित्त कारणों से शरीर छोड़ना अर्थात् आत्मघात जो सर्वथा त्याज्य एवं पाप है, निंदनीय है। 2. च्युत - आय पूर्ण हो जाने पर शरीर का स्वतः छूटना। 3. त्यक्त- असाध्य रोगादि हो जाने पर, किसी आकस्मिक परिस्थिति के कारण मृत्यु
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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