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________________ 20 . मृत्यु की दस्तक की बात यह है कि दूसरों को प्राण-दान देने का सामर्थ्य वाले ऋषियों को भी अपना प्राण त्यागना पड़ा। इससे यह सिद्ध होता है कि मरण एक स्वाभाविक घटना है। यह हर एक स्थूल शरीर के साथ अवश्य घट जाती है, लोक-कल्याण के लिए अवतार लिए हुए भगवान् को भी अपने अवतारी शरीर को त्यागना ही पड़ा है। कोई एकाध योगी अपने योग सामर्थ्य से चिरंजीवी हो सकता है लेकिन स्थूल शरीर के साथ अज़र और अमर नहीं हो सकता है। बड़े-बड़े राक्षसों ने कठोर तपस्या करके अमरत्व का वर माँगा लेकिन ब्रह्मा जी ने किसी को नहीं दिया। इसका एक ही कारण है कि वह प्रकृति के नियम के विरुद्ध हो जाता है। वीरशैव सिद्धान्त अट्ठाईस शैवागमों के सिद्धान्त पर आधारित है। पारमेश्वरागम में - एकेन जन्मना मुक्तिः वीराणान्तु महेश्वरी। इस प्रकार बताकर वीरशैव सिद्धान्त में पुनर्जन्म का निषेध किया गया है। इस सिद्धान्त में पूर्वजन्म अवश्य मानते हैं लेकिन पुनर्जन्म को नहीं मानते। इसका रहस्य यह है कि इस सिद्धान्त में एक सौ एक स्थलात्मक जो साधना पद्धति बताई गयी है उसके अनुसार जब साधक साधना करने लगता है तब वह अपने जीवित काल में ही परशिव बह्मा के साथ सामरस्य का अनुभव करने के कारण जीवनमुक्त हो जाता है। जब तक प्रारब्ध कर्म है तब तक उसका अपने स्थूल शरीर के साथ सम्बन्ध रहता है। प्रारब्ध क्षय होते ही उसके संचित कर्म भी पहले से ही नष्ट हो जाने के कारण उसका पुनर्जन्म नहीं होता है। प्रायः मनुष्य-जन्म का लक्ष्य भी यही होता है। - सूक्ष्म शरीर से युक्त जीवात्मा अपने कर्म के अनुसार किसी भी योनि के स्थूल शरीर में प्रवेश करती है। इस क्रिया को जन्म कहते हैं और जब स्थूल शरीर को छोड़कर चली जाती है तो उसे ही मृत्यु अथवा मरण कहा जाता है। स्थूल शरीर के बाल्यादि अवस्था बदलने पर जीव को जैसे दुःख नहीं होता है उसी प्रकार शरीर बदलने पर भी उसे दुःख नहीं मनाना चाहिए। मृत्यु के इस रहस्य कों जो वास्तविक रूप से जान जाता है वह मृत्यु के परे की स्थिति में पहुँच जाता है। यह स्थिति सबको मिले यही हमारी मंगलमय कामना
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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