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________________ 12 . मृत्यु की दस्तक अजन्मी, नित्य, सनातन और पुरातन है, शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारी जाती। परन्तु अनादि अविद्या के वशीभूत हुई यह अपने वास्तविक स्वरूप को भूल बैठी है और इस पंचभौतिक शरीर में ही - जो प्रकृति का कार्य होने के कारण परिणामी और नश्वर है - उसकी अहं बुद्धि हो रही है। यही कारण है कि यद्यपि शास्त्र के अनुसार शरीर के साथ आत्मा का नाश नहीं होता, फिर भी अज्ञानवश शरीर के नाश को अपना नाश मानने लगी है, शरीर के सुख को अपना सुख और शरीर के कष्ट को अपना कष्ट मानती है। लेखक ने . अमृतत्त्व की प्राप्ति के लिये शास्त्र में बताये गये अनेक उपायों का उद्धरण दिया है। श्री हेतुकर झा ने मैथिल परम्परा के आधार पर मृत्यु की व्याख्या की है। मैथिल कवि विद्यापति ने कीर्तिलता में प्रश्न उठाया है - किसी व्यक्ति के अस्तित्व का सार क्या है? इसका उत्तर देते हैं कि किसी व्यक्ति के अस्तित्व का सार उसका मान है। पाश्चात्य विद्वान् मार्टिन ब्यूबर के अनुसार व्यक्ति के अस्तित्व का सार समाज में इस बात पर निर्भर करता है कि उसके अस्तित्व को दूसरे व्यक्तियों द्वारा जिस स्थिति में है, और भविष्य में वह जिस स्थिति में हो सकता है, स्वीकार किया जाए। विद्यापति मानते हैं कि हर व्यक्ति का अस्तित्व समाज में उसके मान या इज्जत रहने से है। देह का अन्त होना व्यक्ति के अस्तित्व के एक दृष्टिगत आयाम का अन्त है। उसके अस्तित्व का दूसरा आयाम है उसकी कीर्ति जिसकी आयु उसके देह की आयु से बहुत ज्यादा होती है, और वह भी दृष्टिगत है। ये दोनों आयाम काल के घेरे में हैं लेकिन दोनों के काल में बहुत बड़ा अन्तर है। व्यक्ति के अस्तित्व का तीसरा आयाम है उसकी आत्मा जो अमर-अजर है। इस तरह मृत्यु प्रसंग काल की गति अविच्छिन्न है। व्यक्ति के अस्तित्व के एक आयाम का काल निश्चित् है, दूसरे आयाम का काल अनिश्चित् है और तीसरा आयाम काल के घेरे से मुक्त है। सुश्री कुसुम गिरि ने सामाजिक मृत्यु के सम्बन्ध में अपनी बातें रखी हैं। समाज-शास्त्र में गंभीरतापूर्वक दो महत्त्वपूर्ण विषयों पर चर्चा होती है - पहला है आत्महत्या और दूसरा विचलनकारी व्यवहार या विसंगति। आधुनिक समाज के संदर्भ में आतंकवाद भी एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक समस्या के रूप में उपस्थित है। दुर्थीम सबसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने आत्महत्या के मूल में निहित वैयक्तिक कारणों का खंडन कर आत्महत्या को विशुद्ध रूप * से एक सामाजिक तथ्य या घटना कहा है। उसके आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि आत्महत्या से पूर्व व्यक्ति किसी-न-किसी रूप में अपने को समाज में पूर्ण रूप से त्यक्त हुआ पाता है और उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। ये स्थितियां उसकी सामाजिक मृत्यु की द्योतक हैं। इसी प्रकार मर्टन, पार्सन्स, मैकाइवर आदि सामाजिक विचारकों ने भी व्यक्ति के विचलनकारी व्यवहारों या नियमहीनता के कारणों की व्याख्या प्रस्तुत की है, जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि इस स्थिति में व्यक्ति और समाज के बीच जो समन्वयात्मक प्रकार्यात्मक सम्बन्ध होना चाहिए, वह नहीं रह जाता और यह स्थिति भी उसकी सामाजिक
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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