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________________ प्रस्तावना विकासवादी एक- मत के हैं। इनके अनुसार हमारे अनुभव नष्ट नहीं होते। अपने परिणाम से प्रवृत्ति का रूप धारण कर प्रकट हो जाया करते हैं। प्रवृत्ति और कुछ नहीं, पिछले जन्मों की कृतियों के संस्कार हैं। यह लेख जीवन और मृत्यु की गुत्थी को उनकी समग्रता में सुलझाने का एक वैज्ञानिक किन्तु भावपूर्ण प्रयास है। सुश्री मिनती ने आध्यात्मिक विज्ञान के दृष्टिकोण से मृत्यु पर विचार किया है। यह ध्रुव सत्य है कि शरीर क्षणभंगुर है, विनाशी है। जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु भी निश्चित् है। मृत्यु जीवन का आधार है, नींव है। मृत्यु नहीं तो जीवन कहां? जिस प्रकार हम गाढ़ी नींद में अपने शरीर एवं सम्पूर्ण संसार को एकदम भूल जाते हैं - जिसे हम छोटी मृत्यु कहते हैं, उसी प्रकार मृत्यु को मृत्यु की “लम्बी नींद' कह सकते हैं। संसार का विस्मरण ही मृत्यु है न कि चेतन सत्ता का अभाव / मृत्यु का भय अन्य किसी भी भय से अधिक बलवान है। योगवाशिष्ठ के अनुसार कीट और इन्द्र की जीने की आकांक्षा तो समान है ही, उनमें मृत्यु का भय भी समान है। मृत्यु की भावना या भय से मुक्त होने के हेतु गुरुदेव रविन्द्रनाथ ठाकुर का कहना है कि हमें उस महान् पुरुष को जानना होगा जो अंधकार से सर्वथा परे है, परम ज्योतिर्मय है, नित्य है और शाश्वत् है। कबीरदास जी ने कहा था - “जे ही डर को सब लोग डरे है, सो डर हमरे नाहिं" | क्या मृत्यु-चिन्ता महामुक्ति का मार्ग है? मृत्युचिन्ता से कई बड़े एवं महान् सन्तों का आविर्भाव हुआ। मृत्यु-चिन्ता से ही वैराग्य प्राप्त कर सिद्धार्थ को “बुद्धत्व" प्राप्त हुआ। मृत्यु-चिन्ता से ही शंकर बाल्यकाल से ही संन्यासी हुए और इस मृत्यु से ही रमण महर्षि सत्रह साल में ही महान् सन्त के रूप में जाने गये। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने लिखा है - “आदि से अंत तक हमारा जीवन एक प्रकार की मृत्यु है।" योगी श्री अरविन्द ने अपनी अमर कृति सावित्री में सांकेतिक रूप से कहा है - “मृत्यु संग एकाकी निकट विनाश होड़ के, अप्रतिम महिमा उसकी, अंतिम रौद्र दशा में करना होगा पास उसे ही निपट अकेले।" मृत्यु का ध्यान आध्यात्मिक उन्नति के लिये मुख्य साधनाओं में से एक है। कबीर स्पष्ट रूप से कहते हैं - जे ही मरने से जग डरे, मेरे मन आनन्द / .. ' कब मरिहा कब पाइयो, पूरन परमानन्द / / सुकरात को जहर दिये जाने के समय उसके सभी सगे-सम्बन्धी वहां आँसू बहा रहे थे, जबकि कटुतारहित उनके मुख-मण्डल पर प्रसन्नता, प्रफुल्लता परिलक्षित हो रही थी। ऐसा लगता था कि मानो अंतस् में किसी प्रियजन से मिलने की उमंगें उठ रही हों। श्री अजय कुमार श्रीवास्तव ने अमृत शब्द के वास्तविक अर्थ पर प्रकाश डाला है। शास्त्रों का मत है कि आत्मा ही अमृत है। अर्थात्, अमृत कहते हैं मृत्यु के अभाव को, मृत्यु ही जीव के लिये सबसे बड़ा भय है। गीता के अनुसार यह आत्मा न तो किसी काल में जन्म लेती है और न मरती ही है तथा यह न उत्पन्न होकर फिर होने वाली है क्योंकि यह
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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