________________ जन्म, जीवन एवं मृत्यु 185 स्थान से होकर बहती है उस स्थान की सुगंध या दुर्गन्ध साथ लेकर जाती है। हम उस सुगन्ध एवं दुर्गन्ध का अनुभव तो करते हैं लेकिन उसे देख नहीं पाते। उस सुगन्ध ने न तो हवा का रूप-रंग बदला, न उसका वज़न बढ़ाया, न हवा का आकार-प्रकार बदला। फिर भी उस हवा की सुगन्ध या दुर्गन्ध का हम अनुभव करते हैं। ठीक इसी प्रकार से बिजली के तारों को हम देखते हैं उसमें करेन्ट आने के कारण न तो तार का वज़न घटता-बढ़ता है न उसके रूप-रंग, आकार-प्रकार में भिन्नता आती है, न हम उसे देख पाते हैं। उसका अनुभव या तो हम स्पर्श से कर पाते हैं या वह करेन्ट जब उपकरण को यानि हीटर, बल्ब, बिजली की मोटर को चलाता है तो तारों में करेन्ट का होना प्रमाणित होता है। जैसे मोटर में जब तक करेन्ट नहीं तब तक मोटर बेकार है लेकिन करेन्ट आने के उपरान्त उस मोटर से हम चाहे हीटर चलावें, चाहे कूलर, यह हमारे पर निर्भर करता है। ठीक इसी प्रकार इस शरीर में जब प्राण आये तो यह ज़िन्दा हुआ, वरना बेकार | प्राण आने के उपरान्त इसका उपयोग करने में हम स्वतंत्र हैं कारण भगवान् ने हमें सभी उपकरण दे दिये, जैसे काम करने के लिए पाँच कर्मेन्द्रियाँ यानि हाथ, पैर, गुदा, लिंग, जीभ तथा अनुभव करने के लिए पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हमें मिली यानि आँख, नाक, रसना, कान तथा स्पर्श करने के लिए त्वचा। इन सभी इन्द्रियों को संचालित करने के लिये मन एवं बुद्धि भी दे दिया। बुद्धि का काम है जानना तथा मन का काम है मानना। इन सबके ऊपर हमारा स्वभाव या प्रकृति है जो इन सभी इन्द्रियों से परे हैं। इतने उपकरण देने के उपरान्त हम काम करने में स्वतंत्र हो गये। यानि हम अपने सभी उपकरणों का चाहे अच्छे काम में उपयोग करें चाहे बुरे काम में या कुछ न करें। कुछ न करना चाहेंगे तो भी संभव नहीं, कारण भोजन, निद्रा, भय, मैथुन, आदि स्वाभाविक क्रियायें तो होती ही रहेंगी। इस प्रकार हमने यह बताने का प्रयास किया कि हम कर्म करने में स्वतंत्र हैं लेकिन फल पाने में परतंत्र हैं। फल भी एक तत्काल मिलता है जैसे भोजन किया तो पेट भर गया। दूसरा कुछ समय बाद फल मिला जैसे हम व्यायाम करते हैं तो शक्ति हमें कुछ समय बाद मिलेगी। लेकिन भगवान् की पूजा-प्रार्थना की, गरीबों की सेवा की, दान धर्म किया। इसी प्रकार यदि हमसे गलत कर्म हुए तो हमें मालूम नहीं कि इन कर्मों का फल कंब मिलेगा। हो सकता है इनका फल इसी जन्म में मिले या जन्मजन्मान्तर में। यह निश्चित् है कि फल भोगने के लिये हमें पुनर्जन्म लेना ही पड़ेगा। हमारे कर्म जब हमें कर्म-बन्धन में बाँधना बन्द कर देंगे तो पुनर्जन्म का हेतु ही समाप्त हो जायेगा। यह अवस्था तब आती है जब कर्म सहज ही होते रहते हैं। उसमें हमारा कर्त्तापन का भाव नहीं है तब कर्म करने के उपरान्त भी हम अकर्ता हैं। जहाँ कर्त्तापन के भाव का लोप हुआ तो हम अकर्ता हो गये और इस प्रकार कर्म-बन्धन से मुक्त हो गये। ऐसी अवस्था जीवित अवस्था में ही संभव है। मरने के उपरान्त उसी को मुक्ति मिलती है। ऐसी अवस्था जब आती . है तो पुराने पाप-पुण्य भस्म हो जाते हैं तथा नये कर्म हमारे बन्धन के कारक नहीं बनते। यही स्थिति मोक्ष है। निर्वाण है। .