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________________ 184. ___ मृत्यु की दस्तक मान्यता, उसी प्रकार उस शरीर को या तो जलाया जाता है या गाड़ा जाता है या गंगा की धारा में प्रवाहित किया जाता है। मृत्यु के बाद मृत शरीर की स्थिति समानधर्मा है (अपनेअपने धर्मों के अनुसार), उसमें कोई भेदभाव नहीं होता। मरने के बाद की स्थिति भी तीन प्रकार की होती है। एक मुक्त अवस्था यानी जिसका पुनर्जन्म नहीं होता, दूसरा अशरीरी अवस्था, वह अवस्था जब तक आत्मा ने दूसरा शरीर धारण नहीं किया हो, और एक तीसरी अवस्था है जब यह आत्मा शरीर धारण कर लेती है। यह तो जीवन-चक्र है जिसका वर्णन मैंने ऊपर किया। अब हर अवस्था का विश्लेषण करने का प्रयास करूँगा। ___ पहली बात तो यह समझने लायक है कि हम कर्म करने में स्वतंत्र हैं लेकिन फल पाने में परतंत्र हैं। लेकिन फल का मिलना निश्चित् है। केवल यह मालूम नहीं कि फल कब, कितना और किस रूप में मिलेगा। कर्म करने के बाद जब उसका फल भविष्य में मिलता है तो उसे भाग्य की संज्ञा दी गई है। यानी भाग्य के मूल में हमारा पूर्व में किया गया कर्म ही है। चूंकि कर्म फल पाने में हम स्वतंत्र नहीं अतः कर्म की गति को भगवान कृष्ण ने गीता में “गहना कर्मणो गतिः” बताकर इस रहस्य को जानने के प्रयास पर पूर्ण विराम लगा दिया। इसे यों भी समझा जा सकता है कि हमें आज जो भाग्य के रूप में मिला वह हमारे कौनकौन से कर्म का फल है इसे आज तक न तो कोई जान सका और न कोई बता सका। हमारे पुनर्जन्म का हेतु हमारा कर्म बन्धन ही है। जब तक हमारे कर्म अच्छे-बुरे होते रहेंगे तो हमारे पाप-पुण्य का सृजन होता रहेगा और उन पाप-पुण्य को भोगने के लिये हमें शरीर धारण करना ही पड़ेगा। हमारा सुख भोग हमारे पुण्य का क्षय करेगा तथा हमारा दुःख भोग हमारे पाप का क्षय करेगा। एक बात और ध्यान देने की है कि पाप-पुण्य का खाता कभी बराबर नहीं होता। यानी पाप एवं पुण्य को अलग-अलग ही दुःख-सुख के रूप में भोगना पड़ेगा। हमारे पाप-पुण्य का सृजन होना जब बन्द हो जायेगा तो हमारे भावी जन्म का हेतु ही समाप्त हो जायेगा। पाप-पुण्य का सृजन कब बंद होगा जब हम कर्त्तापन के भाव से मुक्त होकर करने पर भी उस कर्म के अकर्ता बने रहेंगे। जैसे हम निरन्तर श्वास ले रहे हैं, हमारी पलकें निरन्तर गिरती-उठती हैं लेकिन उस क्रिया के कर्त्तापन का न तो हमें बोध है और न हम उस क्रिया को करने के लिये कोई प्रयास करते हैं। यानी क्रिया जब हमारा स्वभाव हो जायेगी तो कर्त्तापन के भाव का सर्वथा लोप हो जायेगा। यह समझना कठिन है कि मृत्यु के उपरान्त शरीर तो यहीं छूट जाता है तो हमारा पाप-पुण्य पुनः भोगने के लिये रहते कहाँ हैं! हमारा प्राण जब निकल गया तो हमारी मृत्यु हो गई। जो प्राण निकलकर गया वह अब अशरीरी अवस्था में है। उसी प्रण के साथ हमारे पाप-पुण्य भी चले गये। यह उसी प्रकार साथ जाता है जैसे हवा जब बहती है तो जिस
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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