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________________ 178 मृत्यु की दस्तक इसके अलावा मैं यह बहाना करने का प्रयास कर रहा हूँ कि मैं उस प्रकार का अस्तित्व हूँ जिसके लिए मृत्यु सम्भव नहीं है। मृत्यु मनुष्य की चरम सम्भावना है। मृत्यु की ओर प्रक्षिप्त होने का तथ्य “चिन्ता” से प्रकट होता है। मनुष्य अपनी मृत्यु की चिंता का सामना करने, उसकी प्रतीक्षा करने के बजाय इस चिंता से भागने के लिए भीड़ की गुमनामी में भाग जाता है और सोचता है कि लोगों को किसी दिन मरना है। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि वह यह सोचता है कि किसी तृतीय व्यक्ति को मरना है, वह स्वयं अपने सम्बन्ध में मृत्यु को नकारता है। टॉलस्टाय की प्रसिद्ध कहानी “इवान इलिच की मृत्यु” में यह स्पष्ट दिखाया गया है कि मृत्यु की, सर्व सामान्य समस्या को व्यक्तिगत समस्या “कि मुझे मरना है" इस रूप में लेना अत्यन्त कठिन है। मृत्यु की चिंता को स्वतंत्रतापूर्वक स्वीकार करते हुए यह मानना कि मेरी मृत्यु मेरी है और यह किसी क्षण आ सकती है, मेरे स्थान पर कोई दूसरा नहीं मर सकता, अपनी मृत्यु के सम्मुख मैं अकेला हूँ, इसे मृत्यु की स्वतंत्रता कहा जा सकता है। अतः मृत्यु मानवीय जीवन की चरम परिणति है। प्रमुख अस्तित्वादी चिंतक सार्च के मृत्यु-सम्बन्धी विचार का विकास हाइडेगर के मृत्युदर्शन के विरोध में हुआ है। सार्च इस मत के पोषक दिखलाई पड़ते हैं कि मृत्यु मनुष्य की चरम सम्भावना नहीं है और न ही उसका सत् मृत्योन्मुख सत्य है। सच तो यह है कि स्वनिर्मित सत् कभी अपनी मृत्यु का सामना ही नहीं करता, क्योंकि जब तक जीवन है तब तक मृत्यु नहीं है। सार्च के अनुसार मनुष्य वह नहीं है जो वह है। वह सदैव स्व-निर्माण की प्रक्रिया है। मनुष्य होने का अभिप्राय भविष्य के प्रति योजना के लिए स्वतंत्र होना है, अपनी सम्भावनाओं के प्रति स्वतंत्र होना है, लेकिन मृत्यु हमारे समक्ष सामने खड़ी दीवार की भांति आती है जिसके परे हम नहीं जा सकते, योजना नहीं बना सकते अर्थात् मृत्यु हमारी सम्भावनाओं का निषेध मात्र है। यह हमारी समस्त परियोजनाओं को समाप्त कर देती है अर्थात् मृत्यु मनुष्य की सीमा है। स्व-निर्मित सत् के रूप में मैं अपना वर्तमान हूँ, भविष्य के प्रति अपनी कार्य-योजना हूँ, जबकि मेरा अतीत स्वयं में स्थित जगत् का अंग हो गया है। मृत्यु के समय मैं पूर्ण रूप से अतीत हो जाऊँगा और यह अतीत चूँकि स्वयं में स्थित सत् है, अतः यह कहा जा सकता है कि मृत्यु स्व-निर्मित सत् को स्वनिष्ठ सत् “वस्तु” के रूप में बदल देती है। इसीलिए सात्र के विचारों में वह विरोधाभास दिखलाई पड़ता है, जिसमें जीवित मनुष्य के विषय में कहा जाता है कि वह नहीं है और मृत व्यक्ति के विषय में कहा जाता है कि वह है। सार्च मृत्यु को एक आकस्मिक तथ्य मानते हैं। उनके अनुसार जन्म की तरह मृत्यु भी एक तथ्य है जो बाहर से मेरे निकट आता है। जिस पर मेरा बस नहीं है। मृत्यु एक मानवीय 4. वीइंग एण्ड नथिंगनेस, पृ. 1701
SR No.004376
Book TitleMrutyu ki Dastak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaidyanath Saraswati, Ramlakhan Maurya
PublisherD K Printworld Pvt Ltd, Nirmalkuar Bose Samarak Pratishthan
Publication Year2005
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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